नित्यप्रार्थना
मम अस्यां संस्कृतपाठशालायां प्रथमा प्रस्तुति: अस्ति , विद्वदजना: त्रुटय: दर्शयिष्यन्ति, मार्गदर्शनं चापि करिष्यन्ति, अहं सम्यक मार्गं प्राप्स्यामि अपि च संस्कृतं अवगन्तुम् उत्साह: अपि वर्धिष्यते ।।
विद्या विलास मनसो धृत शील शिक्षा.
सत्यः व्रता, रहित मान मलाप हारः
संसार दुःख दलनेन सुभूषिता ये
धन्या नरः विहित कर्म परोपकारः
प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद: हितकरी विद्याविषये सूक्ष्म संदेशं दातुम्
।।
धन्यवादः आनन्दः।।
जवाब देंहटाएंप्रतुल: मम हृदये अति उल्लास भवति. अहम् संस्कृत भाषायाः अति निम्न स्तर वाला छात्र अस्ति. अतः मम दोषः आप सुधार करती.
जवाब देंहटाएंआनंद भैया मैं तुम्हारा कक्षा से गायब रहने वाला अति पाजी छात्र हूँ. बूढ़ा तोता बन चुका हूँ अतः अपने जीवन कि तमाम व्यवस्तताओं के बीच बहुत धीरे ही कुछ नया सीख पाउँगा. मेरी ऊपर लिखी संस्कृत में सुधार अवश्य करें. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंआदरणीय विचारशून्य जी
जवाब देंहटाएंआपकी संस्कृत में काफी सुधार है, आप कक्ष्या से गायब रहे हैं तो भी कोई बात नहीं, आप इसी तरह प्रयास करें ।
धन्यवाद