नमामीशमीशान निर्वाणरूपं | विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरुपम ||
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहम्| चिदाकाशमाकाशवासं भजेहम्||
निराकार मोंकारमूलं तुरीयम्| गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ||
करालं महाकाल कालं कृपालं | गुणाकार संसारपारं नतोहम् ||
तुषाराद्रि शंकाश गौरं गंभीरम्| मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्||
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा | लसद्भालबालेंदु कंठे भुजंगा ||
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं | प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालम् ||
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं | प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ||
प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं | अखंडं अजं भानुकोटि प्रकाशम् ||
त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिम् | भजेहं भवानीपतिं भावगम्यम् ||
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी | सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ||
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी | प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ||
न यावद् उमानाथ पादारविन्दम् | भजंतीह लोके परे वा नाराणाम् ||
न तावत्सुखम शांति सन्तापनाशम् | प्रसीद प्रभो सर्व भूताधिवासम् ||
न जानामी योगं जपं नैव पूजाम् | नतोहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ||
जरा जन्मदु:खौघ तातप्यमानं | प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ||रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हर्तोशये |
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भु प्रसीदति ||
4 टिप्पणियाँ
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जवाब देंहटाएंउपर्युक्त छंद संस्कृत का समवार्णिक छंद है.
जगती जाति का है, जिसमें १२ वर्ण और ४ यगण होते हैं.
इसमें कुछ मात्राओं की त्रुटियाँ हैं. लेकिन मुझे इसमें
भुजंगमप्रयातं की गूँज मिल रही है.
इसे भुजंगाप्रयाता छंद भी कहते हैं.
संस्कृत के इस छंद का सूत्र है :
भुजंगा प्रयाता बने चार या से.
अथवा
भुजंगमप्रयातं चतुर्भीयकारे.
अथवा
भुजंगम प्रयातं भवेदश्चतुर्भी.
चार बार बोलें .............
यमाता यमाता यमाता यमाता
तो इस छंद की गूँज सुनायी देगी.
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प्रतुल जी छन्द के विषय में जानकारी देने के लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंदीप्ती जी, श्री रूद्राष्टकम् प्रस्तुत करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ।।
मैं तो किसी को कह ही रहा था कि यहाँ पर ये स्तुति भी होती है और देखा तो ये उपलब्ध है बहुत प्रसन्नता हुई
जवाब देंहटाएंललामम्
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