पृथ्वी, मही, वसुधा, धरित्री, मेदिनी, धरणी, धरा,
भूः, भूमि, क्षिति, उर्वी, क्षमा, क्षोणि, एवं च वसुंधरा ।
ऊषर, मरु:, धन्वा, स्थलम्, खिल, स्थान, क्षेत्रं, प्रान्तरम् ।।
केदार, सैकत, मृत्तिका, बिल, क्षिद्र, रेणु:, समतलम् ।।
वन, विपिन, शार्कर, जनपद, गर्त, धूलि:, काननम ।।
उद्घातिनी, रज, शर्करा, मृत, बालुका अथ च विष्टपम ।।
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भूमि — अचला / पृथ्वी / मही / वसुधा / धरित्री / मेदिनी / धरणी / धरा / भूः / भूमि / क्षिति / उर्वी / क्षमा / क्षोणि और वसुंधरा.
जंगल — विपिनं / अटवी / अरण्य / गहनं / काननं / वनं
जगत + हलंत — लोकः / भुवनं / विष्टपम.
निर्जल-स्थान (प्रदेश) — मरु: / धन्वा
ऊँची-नीची जमीन — उद्घातिनी (उद-घातिनी)
पथरीली जमीन — शार्करिलः
बराबर जमीन — समतलम.
रेतीली जमीन — सैकतः
ऊसर — ऊषर
जगह — स्थलम, स्थानं
बस्ती — जनपदः / निवृत
परता — खिलं / अप्रह्तम.
खेत — क्षेत्रं / केदार
पाँतर — प्रान्तरम.
मिट्टी — मृत्तिका / मृत.
धूरा — रेणु: / धूलि / रजः /
कंकड़ — शर्करा / कर्करः
बालू — सिकता / बालुका
गड्ढा — गर्त.
खारी मिट्टी — क्षारमृत्तिका
बिल — बिलं / क्षिद्रम / रंध्रम.
बाम्ही — बल्मीकं / वामलूरः
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अमूल्य प्रस्तुति है आपकी प्रतुल जी
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।
आनंद पाण्डेय जी ...आपका संस्कृत सेवा हेतु यह एक सरह्निये कदम है... क्यों की यदि संस्कृत का प्रसार होगा तो अपनी संस्कृति का प्रसार संभव है ....
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