मनसा सततं स्मरणीयम्
वचसा सततं वदनीयम् ।।
लोकहितं मम करणीयम् ।।
न भोगभवने रमणीयम्
न च सुखशयने शयनीयम्
अहर्निशं जागरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
न जातु दु:खं गणनीयम्
न च निजसौख्यं मननीयम्
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
दु:खसागरे तरणीयम्
कष्टपर्वते चरणीयम्
विपत्तिविपिने भ्रमणीयम्
लोकहितं मम करणीयम् ।।
गहनारण्ये घनान्धकारे
बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे
तत्र मया संचरणीयम्
लोकहितं मम करणीयम्
भवतः ब्लोग् दृष्ट्वा संस्कृतलेखने प्रोत्साहितोऽहम्। ब्लोग् संयक् अस्ति।
जवाब देंहटाएंकृपया हिंदी में अर्थ बताईये
जवाब देंहटाएंलोक हितम
हटाएंMujhe is aslok ka hindi roop chahiye
जवाब देंहटाएं