हताः पाणिनिना वयम्

नपुंसकमिति ज्ञात्वा प्रियायै प्रेषितं मनः
तत्तु तत्रैव रमते हताः पाणिनिना वयम्

टिप्पणियाँ

  1. श्लोक अर्थ :

    हमने अपने मन को नपुंसक जानकर प्रिया के पास भेजा पर वह जाकर उसी में रम गया. मन को नपुंसक [लिंग] बताकर पाणिनि ने हमें तो मार ही डाला.

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  2. हा हा हा हा

    सत्यमेव उक्‍तम् मित्र
    हता: पाणिनिना वयम्

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  3. बहुत बढ़िया. ऐसे मनोरंजक श्लोक भी उपलब्ध हैं मुझे मालूम ना था.

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  4. आज की कक्षा में मन का लिंग मालूम पड़ा. व्याकरण के हिसाब से तो है ही, पर मैं सोचता हूँ की मानव मन वास्तव में नपुंसक ही है.
    क्यों की अगर मन पुरुषत्व पूर्ण होता तो संसार में हर प्राणी अभय होता, कोई किसी को दबा, दलन ना कर सकता और आतंकवाद, भ्रष्टाचार, आदि नहीं होते क्योंकि यह सब नपुंसक मन की प्रेरणा से ही होते है. मन पौरुष से भरा होता तो अपने पुरषार्थ के बल पर जीवन जीने की सोचता.
    और अगर मन स्त्रीलिंगी होता तो संसार में इतनी क्रूरता भी ना होती, तब संसार करुणामयी भावनाओं से पूर्ण होता, शीलवान होता. कोई भूखा भी ना होता, क्योंकि स्त्री पहले सभी को खिलाकर भोजन करती है , द्वार आये को लौटाती नहीं है, तो फिर जब सबके मन स्त्रीलिंगी होते तो हर एक सबकी आवश्यकताओं का ख्याल रखते. बिलकुल सही मन नपुंसक ही है

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  5. आज की कक्षा में मन का लिंग मालूम पड़ा. व्याकरण के हिसाब से तो है ही, पर मैं सोचता हूँ की मानव मन वास्तव में नपुंसक ही है.
    क्यों की अगर मन पुरुषत्व पूर्ण होता तो संसार में हर प्राणी अभय होता, कोई किसी को दबा, दलन ना कर सकता और आतंकवाद, भ्रष्टाचार, आदि नहीं होते क्योंकि यह सब नपुंसक मन की प्रेरणा से ही होते है. मन पौरुष से भरा होता तो अपने पुरषार्थ के बल पर जीवन जीने की सोचता.
    और अगर मन स्त्रीलिंगी होता तो संसार में इतनी क्रूरता भी ना होती, तब संसार करुणामयी भावनाओं से पूर्ण होता, शीलवान होता. कोई भूखा भी ना होता, क्योंकि स्त्री पहले सभी को खिलाकर भोजन करती है , द्वार आये को लौटाती नहीं है, तो फिर जब सबके मन स्त्रीलिंगी होते तो हर एक सबकी आवश्यकताओं का ख्याल रखते. बिलकुल सही मन नपुंसक ही है

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  6. 'मन पर इतना सुन्दर मनन' न तो पहले हुआ था और न अब तक सुना था. वाह अमित जी वाह, मन की नपुंसकता का इतना सुन्दर विश्लेषण! मन गदगद हो गया. गदगद होना तो मन के अधिकार क्षेत्र में है ना? आपने तो मन की व्याकरणिक व्याख्या न करके व्यावहारिक व्याख्या ही कर दी. पोल खोल दी मन के पहनावे की. वह पुरुष वेश में तो कभी स्त्री-वेश में रहता है लेकिन वास्तविकता तो उसकी तालियाँ बजाने की ही है. मन तब तक ही तालियाँ बजाएगा जब तक उन तालियों वाले हाथों में कोई तलवार न थमा दे.

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  7. तलवार हाथ आ जाने पर देखिएगा मन का नर्तन.

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  8. अमित बहुत बढ़िया . तुम्हारा मनन चिंतन मुझे बेहद पसंद है.

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  9. और प्रतुल के साथ तुम्हारी जुगलबंदी तो बेहतरीन होती है.

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  10. बहुत ही सुन्‍दर चर्चा और स्‍वस्‍थ मनोरंजन ।।

    आप सभी के मस्तिष्‍क की पहुँच बहुत दूर तक है ।

    आभार

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