आदर्श देशः प्रस्तुतकर्ता प्रतुल वशिष्ठ को अक्टूबर 02, 2010 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप न मे स्तेनो जनपदे, न कदर्थो न मद्यपः ।नानहिताग्नि नो विद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुतः ।। केकय नरेश अश्वपति उवाच टिप्पणियाँ प्रतुल वशिष्ठ2 अक्टूबर 2010 को 8:26 am बजेमेरे देश मे न कोई चोर है, न कृपण और दरिद्र है और न ही कोई शराबी है. न कोई 'अग्निहोत्र न करने वाला' है और न ही मूर्ख है, जब कोई व्यभिचारी ही नहीं है तो व्यभिचारिणी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंVICHAAR SHOONYA2 अक्टूबर 2010 को 3:07 pm बजेप्रतुल जी बहुत बढ़िया. सही हैं आप अगर व्यभिचारी ही नहीं होंगे तो व्यभिचारिणी कहाँ से होंगी.जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंSANSKRITJAGAT2 अक्टूबर 2010 को 6:29 pm बजेवाह भइयाक्या अद्भुत श्लोक प्रस्तुत किया है आपनेहमारा प्राचीन भारत कितना संस्कारित था ।आज की दशा पर मन खिन्न हो जाता है ।।जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब दें shyam gupta6 अक्टूबर 2010 को 1:11 pm बजेशानदार !!!!!!!सत्य, सामयिक.जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
मेरे देश मे न कोई चोर है,
जवाब देंहटाएंन कृपण और दरिद्र है और
न ही कोई शराबी है.
न कोई 'अग्निहोत्र न करने वाला' है और
न ही मूर्ख है,
जब कोई व्यभिचारी ही नहीं है तो
व्यभिचारिणी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
प्रतुल जी बहुत बढ़िया. सही हैं आप अगर व्यभिचारी ही नहीं होंगे तो व्यभिचारिणी कहाँ से होंगी.
जवाब देंहटाएंवाह भइया
जवाब देंहटाएंक्या अद्भुत श्लोक प्रस्तुत किया है आपने
हमारा प्राचीन भारत कितना संस्कारित था ।
आज की दशा पर मन खिन्न हो जाता है ।।
शानदार !!!!!!!सत्य, सामयिक.
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