मेरे देश मे न कोई चोर है, न कृपण और दरिद्र है और न ही कोई शराबी है. न कोई 'अग्निहोत्र न करने वाला' है और न ही मूर्ख है, जब कोई व्यभिचारी ही नहीं है तो व्यभिचारिणी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
प्रतुल जी बहुत बढ़िया. सही हैं आप अगर व्यभिचारी ही नहीं होंगे तो व्यभिचारिणी कहाँ से होंगी.
वाह भइयाक्या अद्भुत श्लोक प्रस्तुत किया है आपनेहमारा प्राचीन भारत कितना संस्कारित था ।आज की दशा पर मन खिन्न हो जाता है ।।
शानदार !!!!!!!सत्य, सामयिक.
4 टिप्पणियाँ
मेरे देश मे न कोई चोर है,
जवाब देंहटाएंन कृपण और दरिद्र है और
न ही कोई शराबी है.
न कोई 'अग्निहोत्र न करने वाला' है और
न ही मूर्ख है,
जब कोई व्यभिचारी ही नहीं है तो
व्यभिचारिणी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.
प्रतुल जी बहुत बढ़िया. सही हैं आप अगर व्यभिचारी ही नहीं होंगे तो व्यभिचारिणी कहाँ से होंगी.
जवाब देंहटाएंवाह भइया
जवाब देंहटाएंक्या अद्भुत श्लोक प्रस्तुत किया है आपने
हमारा प्राचीन भारत कितना संस्कारित था ।
आज की दशा पर मन खिन्न हो जाता है ।।
शानदार !!!!!!!सत्य, सामयिक.
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