आदर्श देशः

न मे स्तेनो जनपदे, न कदर्थो न मद्यपः 
नानहिताग्नि नो विद्वान्न स्वैरी स्वैरिणी कुतः 

केकय नरेश अश्वपति उवाच

टिप्पणियाँ

  1. मेरे देश मे न कोई चोर है,
    न कृपण और दरिद्र है और
    न ही कोई शराबी है.
    न कोई 'अग्निहोत्र न करने वाला' है और
    न ही मूर्ख है,
    जब कोई व्यभिचारी ही नहीं है तो
    व्यभिचारिणी होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता.

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  2. प्रतुल जी बहुत बढ़िया. सही हैं आप अगर व्यभिचारी ही नहीं होंगे तो व्यभिचारिणी कहाँ से होंगी.

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  3. वाह भइया
    क्‍या अद्भुत श्‍लोक प्रस्‍तुत किया है आपने
    हमारा प्राचीन भारत कितना संस्‍कारित था ।
    आज की दशा पर मन खिन्‍न हो जाता है ।।

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