श्रीमद्भगवद्गीता- केचन् श्लोका: शारदा महोदयया प्रेषिता: ।। प्रस्तुतकर्ता SANSKRITJAGAT को नवंबर 21, 2010 लिंक पाएं Facebook Twitter Pinterest ईमेल दूसरे ऐप श्रीमदभगवतगीता-श्रीकृष्ण उवाच: 1- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोपराणि, तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्याति संयाति नवानि देहि । 2- स्थित्प्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव , स्थितधी: किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किं ? टिप्पणियाँ SANSKRITJAGAT21 नवंबर 2010 को 2:07 pm बजेशारदा महोदयया प्रेषितौ एतौ द्वौ श्लोकौ ।द्वितीयश्लोकस्य आंग्लाभाषायाम् अर्थ: अपि तया एव कृता अर्जुन ने कृष्ण से पूछा- हे कृष्ण ! What is the definition of a God realized saul-stable of mind and estaablished in samadhi (perfect tranquility of mind)?, How does the man of stable mind speak, how does he sit, how does he walk?जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
शारदा महोदयया प्रेषितौ एतौ द्वौ श्लोकौ
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द्वितीयश्लोकस्य आंग्लाभाषायाम् अर्थ: अपि तया एव कृता
अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-
हे कृष्ण !
What is the definition of a God realized saul-stable of mind and estaablished in samadhi (perfect tranquility of mind)?, How does the man of stable mind speak, how does he sit, how does he walk?