श्रीमद्भगवद्गीता - शारदा महोदयया प्रेषिता: श्‍लोका: ।।







1- यदा संहरते चायं कुर्मोंगानीव सर्वश:, 
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता.


2- विषया विनिवर्तन्ते निराहारस्य देहिन:
रसवर्जं रसोप्यस्य परं दृष्ट्वा निवर्तते 



3- यततो ह्यपि कौन्तेय पुरुषस्य विपश्चित:
इन्द्रियाणि प्रमाथिनी हरन्ति प्रसभम मन: ।।



4- तानिं सर्वाणि संयभ्य युक्त आसीत् मत्पर:
वशे हि यस्येद्रियाणि तस्य प्रज्ञां प्रतिष्ठा  ।।




टिप्पणियाँ

  1. 1-When like a tortoise, which draws in its limbs from all directions, he withdraws his senses from the sense-objects, his mind is (should be considered as) stable

    2- Sense-objects turn away from him, who does not enjoy them with his senses; but the taste for them persists. This relish also diappears in the case of man of stable mind when he sees the Supreme.

    3- O Arjun! Turbulent by nature, the sense even of a wise man, who is practising self-control, forcibly carry away his mind,

    4- Krushna says:
    Therefore, having controlled them all and collecting his mind one should sit for meditation, devoting oneself heart and soul to Me. whose senses are mastered, is know to have a stable mind.

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  2. पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ , बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हो ...हार्दिक शुभकामनायें !

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  3. प्रिय आनन्द भाई शीर्षक के इस शब्द की टंकण की गलती सुधार लीजिए
    महोदयया
    हृदय से प्रेम सहित

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  4. रूपेश जी
    शब्‍दों पर बार बार ध्‍यान दिलाने के लिये धन्‍यवाद

    आप सही मायने में संस्‍कृत के हितैषी हैं ।


    किन्‍तु यहाँ महोदयया बिलकुल सही शब्‍द है

    ये महोदया शब्‍द का तृतीया एक वचन का रूप है जिसका अर्थ महोदया के द्वारा होता है ।।


    आगे भी हमारी गलतियों पर या किन्‍ही शंकित शब्‍दों पर अपनी राय देते रहियेगा ।।


    आपका बहुत आभार

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