एकं सुचिन्तनम् ।। प्रस्तुतकर्ता Vishnukant Mishra को नवंबर 14, 2010 लिंक पाएं Facebook X Pinterest ईमेल दूसरे ऐप धनाभावे विषमकाले मृत्योर्मुखे च धैर्यं न त्यजेत् ।विवाद समये विपत्तिकाले च साहसं न त्यजेत् ।। टिप्पणियाँ SANSKRITJAGAT14 नवंबर 2010 को 12:47 pm बजेअत्युत्तमं चिन्तनं महोदयएतेषु कालेषु प्रायस: जनानां धैर्यं गच्छति एवजवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंप्रतुल वशिष्ठ14 नवंबर 2010 को 1:23 pm बजे..@ धन की कमी के समय, विपरीत स्थितियों में और मृत्यु के मुख यानी बीमारी के समय ..... धैर्य नहीं त्यागना चाहिए. झगड़े के समय और मुसीबत के समय मनोबल [साहस] नहीं त्यागना चाहिए. _______________एक प्रेरणास्पद सूक्ति. ..जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंSmart Indian14 नवंबर 2010 को 9:14 pm बजेसुन्दर व उपयोगी सूक्ति, धन्यवाद!जवाब देंहटाएंउत्तरजवाब देंटिप्पणी जोड़ेंज़्यादा लोड करें... एक टिप्पणी भेजें
अत्युत्तमं चिन्तनं महोदय
जवाब देंहटाएंएतेषु कालेषु प्रायस: जनानां धैर्यं गच्छति एव
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जवाब देंहटाएं@ धन की कमी के समय, विपरीत स्थितियों में और मृत्यु के मुख यानी बीमारी के समय ..... धैर्य नहीं त्यागना चाहिए.
झगड़े के समय और मुसीबत के समय मनोबल [साहस] नहीं त्यागना चाहिए.
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एक प्रेरणास्पद सूक्ति.
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सुन्दर व उपयोगी सूक्ति, धन्यवाद!
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