दुह् (दुहना) -
गां दोग्धि पय: ।
गाय से दूध दुहता है ।
(अत्र अपादानकारकस्य अर्थप्रकटने सति अपि उक्तसूत्रेण कर्मकारकं जातम्)
याच् (माँगना)
बलिं याचते वसुधाम्
बलि से पृथ्वी माँगता है ।
याच् धातो: समानार्थी 'भिक्ष्' धातोरपि प्रयोगे द्वितीया एव भविष्यति ।
बलिं भिक्षते वसुधाम्
पच् (पकाना)
तण्डुलान् ओदनं पचति
चावलों से भात् बनाता है ।
दण्ड् (दण्ड देना)
गर्गान् शतं दण्डयति
गर्गो पर 100रू. का दण्ड लगाता है ।
रुधि (रोकना)
व्रजं गां अवरुणद्धि
बाडे में गाय को रोकता है ।
पृच्छ् (पूछना)
माणवकं पन्थानं पृच्छति
बालक से रास्ता पूछता है ।
चि (चुनना)
लतां पुष्पं चिनोति
लता से पुष्प चुनता है
ब्रू, शास् (बोलना, उपदेश करना)
माणवकं धर्मं ब्रूते शास्ति वा
बालक को धर्म का उपदेश करता है ।
जि (जीतना)
देवदत्तं शतं जयति
देवदत्त से 100रू. जीतता है ।
मथ् (मथना)
अमृतं क्षीरनिधिं मथ्नाति ।
अमृत के लिये क्षीरसागर का मन्थन करता है ।
मुष् (चुराना)
शतं मुष्णाति देवदत्तं
देवदत्त से 100रू. चुरा लेता है ।
नी, हृ, कृष्, वह् (ले जाना)
ग्रामं अजां नयति, हरति, वहति, कर्षति वा
गाँव में बकरी को ले जाता है ।
इति
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