पाठ (2) प्रथमा विभक्ति = गतिवैविध्यम् (विविध गतियां)




कर्त्तृवाच्य में कर्त्ता (=क्रिया को करनेवाला) कारक में प्रथमा विभक्ति होती है 
यथा-



सर्पः सर्पति = सांप सरकता है।

कीटः रिंगति = कीड़ा रेंगता है।

हठिनी बाला लुण्ठति = जिद्दी लड़की लोटती है।

तरणिः तरति = नाव तैरती है।

प्लवः प्लवते = बेड़ा तैरता है।

मण्डूकः उत्प्लवते = मेंढक कूद-कूद कर चलता है।

माला उत्प्लवते / उत्पतति = माला उछलती है।

अवगाहकः अवगाहते = गोताखोर डुबकी लगाता है।

भ्रमरः भ्रमति = भौंरा घूम-घूमकर उड़ता है।

शलभः शलति = पतंगा स्थिर होकर उड़ता है।

मार्जारः चोपति = बिल्ली चुपके से चलती है।

मृगः धावति = हिरण दौड़ता है।

चित्रकः जवति = चीता वेग से दौड़ता है।

वायुः वाति = हवा बह रही है।

वात्या वाति = आंधी चल रही है।

नदी प्रवहति = नदी बह रही है।

निर्झरः कलहति = झरना कल-कल बह रहा है।

बसयानं चलति = बस चल रही है।

ऑटोयानं गच्छति = ऑटोरिक्क्षा जा रही है।

वानरः कूर्दते = बंदर कूद रहा है।

óं स्त्रं सरति = कपड़ा सरक रहा है।

सौम्या स्खलति = सौम्या फिसल रही है।

खञ्जा खञ्जति = लंगड़ी लड़की (पंगु) लंगड़ाकर चलती है।

पर्पिकः पर्पति = पंगु बैसाखी से चलता है।

हयः हयति = घोड़ा दौड़ रहा है।

शोणा शोणति = लाल घोड़ी दौड़ रही है।

अजा अजति = बकरी चल रही है।

वाजी विक्रमते = घोड़ा (ब्याह आदि में) नाच रहा है।

पथिकः पथति = पथिक रास्ते पर चल रहा है।

घृतं द्रवति = घी पिघल रहा है।

नगरं ध्वंसते = नगर तहस-नहस हो रहा है।

शाखा त्रुटति = पेड़ की शाखा टूट रही है / टूट कर गिर रही है।

विटपः कम्पते = टहनी कांप रही है।

शरीरं / ग्रात्रं वेपते = शरीर / शरीरावयव कांप रहा है।

दीपशिखा एजते = दिए की लौ कांप रही है।

धरणिः ध्रजति = भूमि कांप रही है।

ध्वजा ध्वजति = झंड़ा लहरा रहा है।

ग्रहः घूर्णते = ग्रह अपने कीली पर घूम रहा है।

अज्ञानी दन्द्रम्यते = अज्ञानी भटक रहा है।

प्रेङ्खा प्रेङ्खते = झूला झूल रहा है।

दोला दोलयते = हिंडोला / पालना झूल रहा है।

चित्तं दोलयते = मन बेचैन हो रहा है।

दर्शकः दोलयते = बैठा हुआ दर्शक दाएं-बाएं हिल रहा है।

आत्मा अतति = जीवात्मा (एक शरीर से  दूसरे शरीर में) सतत घूमता है। 

यन्त्रम् अतति = मशीन लगातार चल रही है। 

निरुद्यमिनी अटति / अटाट्यते = निठल्ला व्यक्ति इधर - उधर भटक रहा है। 

गौः व्रजति = गाय समूह में चलति है।

परिव्राजकः परिव्रजति = परिव्राजक (=संन्यासी) चारों और भ्रमण करता है।

वैरागी प्रव्रजति = वैरागी सबकुछ त्यागकर (=संन्यास लेकर) जा रहा है।

आतङ्की प्रव्रजति = आतङ्कवादी निर्वासित होकर जा रहा है।
 

अनुवादिका: आचार्या शीतल (प्रधानाचार्या, आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन, रोजड़, गुजरात)
भूतपूर्व - आचार्या, आर्ष शोध संस्थान, कन्या गुरुकुल अलियाबाद, आन्ध्रप्रदेश, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति: ब्रह्मचारी अरुणकुमार "आर्यवीर" (आर्यवीर प्रकाशन, मुम्बई, महाराष्ट्र, आर्यावर्त्त)


इति

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