कर्त्तृवाच्य में कर्त्ता (=क्रिया को करनेवाला) कारक में प्रथमा विभक्ति होती है
यथा-
विक्रमः पठति = विक्रम पढ़ता है/ पढ़
रहा है।
माला पचति = माला पकाती है/ पका रही
है।
उपाध्यायः आगच्छति = उपाध्याय आ रहा
है/ रहे हैं।
कुक्कुरः शेते = कुत्ता सो रहा है।
मार्जारः पिबति = बिल्ली पी रही है।
पक्षिणः उड्डयन्ति = पक्षी उड़ रहे
हैं।
अहं गच्छामि = मैं जा रहा हूं/ जा रही
हूं।
आवां यजावः = हम दोनों यज्ञ कर रहे
हैं/ कर रही हैं।
वयं उपविशामः = हम सब बैठ रहे हैं/
रही हैं।
गोपालः दोग्धि = गोपाल दुह रहा है।
शाकविक्रेता विक्रीणाति = सब्जी
बेचनेवाला बेच रहा है।
ग्राहकः क्रीणाति = ग्राहक खरीद रहा
है।
भक्तः प्रार्थयति = भक्त प्रार्थना कर
रहा है।
त्वं सत्यापयति = तू सत्य कह रहा है/
रही है।
युवां यमयतः = तुम दोनों यम का पालन
कर रहे हो/ रही हो।
यूयं नियमतः = तुम सब नियम का पालन कर
रहे हो/ रही हो।
सः शब्दायते = वह शोर कर रहा है।
तौ कलहायेते = वे दोनों लड़ रहे हैं।
तेे करुणायन्ते = वे सब करुणा की
अनुभूति कर रहे हैं।
कुम्भकारः घटयति = कुम्हार घड़ा बना
रहा है।
तन्तुवायः वस्त्रयति = जुलाहा कपड़ा बुन रहा है।
चित्रकारः चित्रयति = चित्रकार चित्र
बना रहा है।
भर्जकः भर्जयति = बड़भुजा (भूननेवाला)
भून रहा है।
सूचिकः सिव्यति = दरजी सिलाई कर रहा
है।
चर्मकारः निर्मापयति = चमार बना रहा
है।
माता सम्भाण्डयते = माता बर्तनों को
ठीक रख रही है।
भगिन्यौ वस्त्रयतः = दो बहनें कपड़े धो रही हैं।
गृहस्थः तपस्यति = गृहस्थ जपस्या कर
रहा है।
बालः सुखायते = बच्चा सुख की अनुभूति
कर रहा है।
वाष्पस्थाली वाष्पायते = कुकर में से
भाप निकल रही है।
रेलयानं ध्रूम्रायते = रेलगाड़ी से
धूंआ निकल रहा है।
बालः उत्सुकायते = बालक उत्सुकता दिखा
रहा है/ उत्सुक है।
नेत्रे लोहितायेते = दोनों आंखें लाल
हो रही हैं।
मूर्खः पण्डितायते = मूर्ख पडित जैसा
आचरण/व्यवहार कर रहा है।
पाचिका पिपक्षति = भोजन पकानेवाली
पकाना चाहती है।
तृषितः पिपासति = प्यासा पीना चाहता
है।
विद्यार्थी पिपठिषति = विद्यार्थी
पढ़ना चाहता है।
जिज्ञासु जिज्ञासति = जिज्ञासु जानना
चाहता है।
शिष्या पिपृच्छिषति = शिष्या पूछना
चाहती है।
रोगी मुमूर्षति = रोगी मरना चाहता है।
द्रष्टा दिदृक्षते = देखनेवाला देखना
चाहता है।
बाला रुरुदिशति = बच्ची रोना चाहती
है/ रोनेवाली है।
जेता जिगीषति = जीतनेवाला जीतना चाहता
है।
उपासकः उपासिषते = भक्त उपासना करना
चाहता है।
श्रान्तः सुषुप्सति = थका हुआ व्यक्ति
सोना चाहता है।
स्वसा पापच्यते = बहन बार-बार पकाती
है/ खूब पकाती है।
धावकः दाधाव्यते = दौड़नेवाला खूब
दौड़ता है/बार-बार दौड़ता है।
अग्निः जाज्वल्यति = अग्नि खूब तप रही
है।
सूर्यः दोधूप्यते = सूर्य खूब तप रहा
है।
सेविका सिषेव्यते = सिलाई करनेवाली
खूब सिलती है/ बार-बार सिलती है।
रजकः पाप्रक्षाल्यते = धोबी बार-बार
धोता है/खूब धोता है।
वाचालः वावद्यते = जल्पी (बकवादी)
बहुत बोलता है।
चलचित्रदर्शी दरीदृश्यते = सिनेमा
देखने का शौकीन खूब/ बार-बार देखता है।
कृषकः करीकृष्यते = किसान बार-बार हल
जोतता है।
अनुवादिका: आचार्या शीतल (प्रधानाचार्या, आर्यवन आर्ष कन्या गुरुकुल, आर्यवन, रोजड़, गुजरात)
भूतपूर्व - आचार्या, आर्ष शोध संस्थान, कन्या गुरुकुल अलियाबाद, आन्ध्रप्रदेश, आर्यावर्त्त)
टंकन प्रस्तुति: ब्रह्मचारी अरुणकुमार "आर्यवीर" (आर्यवीर प्रकाशन, मुम्बई, महाराष्ट्र, आर्यावर्त्त)
इति
2 टिप्पणियाँ
रिकुेरगक्😀
जवाब देंहटाएंMpsc
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