(गत्यर्थक, ज्ञानार्थक, भक्षणार्थक, शब्दकर्मार्थक एवं अकर्मक धातुओं के अण्यन्तावस्था में जो कर्त्ता है वह धातुओं की ण्यन्तावस्था में कर्म संज्ञक होता है, अतः उससे द्वितीया विभक्ति होती है।)
भक्षणार्थक (अद् + खाद् धातु को छोड़ कर)
बालः दुग्धं पिबति = बालक दूध पी रहा है।
धात्री बालं दुग्धं पाययते = धायी बालक को दूध पिला रही है।
रोगी गुलिकां निगलति = रोगी गोली निगल रहा है।
परिचारिका रोगिणं गुलिकां निगालयति = नर्स रोगी को गोली निगलवा रही है।
माणविका आम्रं चूषति = बच्ची आम चूस रही है।
माणविकाम् आम्रं चोषयति = बच्ची से आम चुसवा रहा है।
कानीनः कुलपीम् अवलेक्ष्यति = कंुवारी का बच्चा कुलफी चाटेगा।
कानीनं कन्या कुलपीम् अवलेहिष्यति = कन्या कानीन को कुलफी चटवाएगी।
प्रपितामही फाणितं जमेत् = परदादी राब खाए।
प्रपौत्री प्रपितामहीं फाणितं जमयेत् = पड़पोती परदादी को राब खिलाए।
महिषः घासम् अघसत् = भैंसे ने घास खाई।
महिषं घासम् अजीघसत् = भैंसे को घास खिलवाई।
प्रपितामहः कौष्माण्डम् अभुनक् = परदादा ने पेठा खाया।
प्रपौत्रः प्रपितामहं कौष्माण्डम् अभोजयत् = पड़पोते ने परदादा को पेठा खिलाया।
प्रमातामही रसगोलम् अश्नातु = परनानी रसगुल्ला खाए।
दौहित्री प्रमातामहीं रसगोलम् आशयतु = धेवती (पुत्री की पुत्री) परनानी को रसगुल्ला खिलाए।
प्रमातामहः हैमीं अभक्षिष्ट = परनाना ने बर्फी खाई।
नप्त्री प्रमातामहं हैमीम् अभिभक्षत = धेवती ने परनाना को बर्फी खिलाई।
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संस्कृताः जनाः संस्कृतं विजानन्ति = शिष्ट लोग संस्कृत जानते हैं।
संस्कृतज्ञः संस्कृतान् जनान् संस्कृतं विज्ञापयति = संस्कृतज्ञ शिष्ट लोगों को संस्कृत जना रहा है।
अहं समाचारम् अश्रौषम् = मैंने समाचार सुने।
मां समाचारम् अशुश्रवत् = मुझे समाचार सुनाए।
त्वमद्य कां वार्तां उपालभत = तूने आज किस बात को जाना ?
सः त्वामद्य कां वार्तां उपालम्भयत = उसने आज तुझे कौन सी बात बताई ?
अतुलः न्यायदर्शनम् अध्येष्यते = अतुल न्यायदर्शन पढ़ेगा।
अहम् अतुलं न्यायदर्शनम् अध्यापयिष्ये = मैं अतुल को न्यायदर्शन पढ़ाऊँगी / पढ़ाऊँगा।
सर्वे गीतां पठेयुः = सब को गीता पढ़नी चाहिए।
विपश्चित् सर्वान् गीतां पाठयेयुः = विद्वान् को सभी को गीता पढ़ानी चाहिए।
वादी सत्यं वदतु = वादी सत्य बोले।
वादिनं सत्यं वादयतु = वादी से सत्य बुलवाए।
जल्पी जल्पति = बकवादी बकवास कर रहा है।
जल्पिनं जल्पयति = बकवादी से बकवास करवा रहा है।
मूर्खः नष्टं विलपति = मूर्ख नष्ट हुई वस्तु के लिए शोक कर रहा है।
महामूर्खः मूर्खं नष्टं विलापयति = महामूर्ख मूर्ख से नष्ट हुई वस्तु पर शोक कराता है।
भाषिता भाषणम् अभाषिष्यते = वक्ता भाषण देगा।
भाषितारं भाषणं अभाषयिष्यते = प्रवक्ता से भाषण दिलवाएगा।
छात्रः पाठम् अपाठीत् = छात्र ने पाठ पढ़ा।
छात्रं पाठम् अपीपठम् = मैंने छात्र से पाठ पढ़वाया।
अकर्मक धातुएं
श्रोतारः तकन्ति = श्रोता खूब हंस रहे हैं। (तकः हंस हंस के लोट-पोट हो जाना।)
परिहासी श्रोतॄन् ताकयति = मजाकिया श्रोताओं को हंसा रहा है।
सर्वे प्रत्यहं हसेयुः = सभी प्रतिदिन हसें।
हास्यप्रशिक्षकः सर्वान् प्रतिदिनं हासयेयुः = हास्यप्रशिक्षक सभी को प्रतिदिन हंसाए।
सुखिनः कखिष्यन्ति = सुखी लोग हंसेंगे।
ईश्वरः सुखिनः काखयिष्यति = ईश्वर सुखी लोगों को हंसाएगा।
पापी रोदितु = पापी रोवे = पापी रोए।
रौद्रः पापिनं रोदयतु = रुद्रस्वरूप ईश्वर पापी को रुलाए।
दुःखिणो जनाः अपि अघाघिषुः = दुःखी लोग भी हंसे।
सुखदो दुःखिणो जनानपि अजीघघत् = सुख देनेवाले ईश्वर ने दुःखी लोगों को भी हंसाया।
को हसति ? = कौन हंसता है ?
कः कं हासयति ? = सुखस्वरूप ईश्वर किसे हंसाता है ?
निर्मलो हसति = निर्मल व्यक्ति हंसता है।
कः निर्मलं हासयति = सुखस्वरूप ईश्वर निर्मल व्यक्ति को हंसाता है।
प्राणिनः प्राणन्ति = प्राणी जी रहे हैं।
प्राणाः प्राणिनः प्राणयन्ति = प्राण प्राणियों को जिला रहे हैं।
सविता उदेति अस्तमेति च = सूर्य उदय एवं अस्त होता है।
कः सवितारम् उदयति अस्तमयति च ? = कौन सूर्य को उदित एवं अस्त कर रहा है ?
पुत्रः अजागः = पुत्र जागा।
पिता पुत्रम् अजागरयत् = पिता ने पुत्र को जगाया।
वृद्धः अपप्तत् = बूढ़ा गिर गया।
मेघान् अध्यधि वायुयानम् उड्डीयते = बादलों के ऊपर विमान उड़ रहा है।
वृक्षम् अधोऽधः तपस्वी शेते = पेड़ के नीचे तपस्वी सो रहा है।
अनुस्वार सन्धि
वर्ण/वर्ग प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पञ्चम
कवर्ग क् ख् ग् घ् ङ्
चवर्ग च् छ् ज् झ् ञ
टवर्ग ट् ठ् ड् ढ् ण्
तवर्ग त् थ् द् ध् न्
पवर्ग प् फ् ब् भ् म्
अन्तस्थ वर्ण य् र् ल् व्
ऊष्म वर्ण श् ष् स् ह्
अच् = स्वर (अ आ... आदि)
हल् = व्यञ्जन (क् ख्... आदि)
अनुस्वार = ं (कं)
अनुनासिक = ँ (कँ)
अवग्रह चिह्न = ऽ (रामो ऽ स्ति)
(पदान्त मकार को हल अर्थात् कोई व्यञ्जन बाद में हो तो अनुस्वार ( ं ) आदेश हो जाता है। यथा-)
रामम् पश्यति = रामं पश्यति = राम को देख रहा है।
भाण्डम् शुध्यति = भाण्डं शुध्यति = बरतन शुद्ध कर रहा है।
वस्त्रम् शुष्यति = वस्त्रं शुष्यति = कपड़ा सुखा रहा है।
काष्ठम् भिनत्ति = काष्ठं भिनत्ति = लकड़ी फाड़ रहा है।
पटम् दृणाति = पटं दृणाति = थान को फाड़ रहा है।
पिष्टान्नम् खादति = पिष्टान्नं खादति = पंजीरी खा रहा है।
आचार्या शीतल जी आर्ष गुरुकुल अलियाबाद
https://www.facebook.com/sanskritamm
इति
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