पाठ: (26) षष्ठी विभक्ति (5) + विसर्ग-सन्धिः ||



(क्रिया को बार-बार करने के होनेवाले कृत्वसुच्, सुच् तथा धा प्रत्ययवाले शब्दों के साथ कालाधिकरण कारक में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

अजा दिनस्य बहुकृत्वो बहुधा वा भुङ्क्ते = बकरी दिन में बहुत बार खाती है।
एषः संन्यासी दिवसस्य सकृत् भक्षति = यह संन्यासी दिन में एक बार खाता है।
एषो यायावरो मासस्य बहुकृत्वो बहुधा वा भ्रमणाय गच्छति = यह घुमक्कड़ महिने में बहुत बार घूमने के लिए चला जाता है।
अयं योगी दिनस्य द्विर्गुलिकां गृह्णाति = यह रोगी दिन में दो बार गोली लेता है।
अयं मद्यपः पक्षस्य त्रिर्मधु पिबति = यह शराबी पखवाडे में तीन बार शराब पीता है।
इयं चायपी अह्नः चतुः चायपानं करोति = यह चाय पीनेवाली दिन में चार बार चाय पीती है।
स्वास्थ्याय दिवसस्य द्विर्भुञ्जीत, न ततोऽधिकम् = स्वास्थ्य के लिए दिन में दो बार खाना चाहिए, इससे अधिक नहीं ।
सप्ताहस्य सकृत् उपवसेत् = सप्ताह में एक बार उपवास करे।
दिनस्य द्विः सन्ध्यामुपासीत = दिन में दो बार सन्ध्या करे।
भोजनात्पूर्वं त्रिराचमेत् = भोजन से पूर्व तीन बार आचमन करे।
अपरिचितोऽपि अयं जनोऽस्माकमुपनिवेशे बहुधा दृश्यते = अपरिचित यह व्यक्ति अपनी सोसायटी में बहुत बार दिखाई देता है।
चलत्यहं द्विराहिता किन्तु न पतिता = चलते हुए मुझे दो बार ठोकर लगी, फिर भी मैं नहीं गिरी।
इयं यजमाना संवत्सरस्य षट्कृत्वो यजुर्वेदस्य पारायणं करोति = यह यजमाना वर्ष में छः बार यजुर्वेद का पारायण करती है।
अयं कुक्कुरः रात्रेः त्रिः रौति = यह कुत्ता रात में तीन बार भौंकता है।
जीवनस्य बहुधाऽसफलोऽयं पुनरप्युत्साहेन कार्यं करोति = जीवन में बहुत असफल होने पर भी यह व्यक्ति बहुत उत्साह से काम करता है।

(दक्षिणतः, उत्तरतः, परतः, अवरतः, उपरि, उपरिष्टात्, पश्चात्, उत्तरात्, अधरात्, दक्षिणात्, पुरः, अधः, अवः, पुरस्तात्, अधस्तात् और अवस्तात् इन शब्दों के प्रयोग में साथवाले शब्द से षष्ठी विभक्ति होती है।)

भारतवर्षस्य दक्षिणातो दक्षिणाद् वा महासागरोऽस्ति = भारत के दक्षिण में समुद्र है।
भारतदेशस्योत्तरत उत्तराद् वा हिमालयो वर्तते = भारत के उत्तर में हिमालय है।
अस्याः सरस्या अवरतोऽवरस्तादवो वा पर्वताः सन्ति = इस बड़े तालाब के पीछे पर्वत हैं।
मम पश्चात् तिष्ठ = मेरे पीछे खड़ा रह।
प्रथमभूमेरुपरि उपरिष्टात् वा केचन प्रकोष्ठाः सन्ति = प्रथम मंजिल के ऊपर कुछ कमरे हैं।
अस्माकं यज्ञवेद्याः अधोऽधस्तादधराद् वा वेदाः स्थापिताः सन्ति = हमारी यज्ञवेदी के नीचे वेद रखे हुए हैं।
सत्यार्थभवनस्याऽधः सत्यार्थप्रकाशो वर्तते = सत्यार्थ-भवन के नीचे सत्यार्थ-प्रकाश रखा है।
पितुः पुरस्तात् पुरो वा दुर्घटना जाता पुत्रश्च मृतः = पिता के सामने ही दुर्घटना हुई और बेटा मर गया।
तस्य वृक्षस्य अधरात् सर्पबिलं वर्तते = इस पेड़ के नीचे सांप का बिल है।
छदिषः उपरि स्थित्वा बालः पतङ्गमुड्डायति = छत पर खड़ा होकर बच्चा पतंग उड़ा रहा है।
पथि मम पुरस्तादेव सर्पः सृप्तः = मार्ग में मेरे सामने से ही सांप गया।
मम पितृव्योऽस्माकमुपरिष्टात् वसति = मेरे चाचाजी हमारे (घर के) ऊपर रहते हैं।
शाकस्योपरि तु सम्यक् प्रतीयते किन्तु नीचैर्ज्वलितमस्ति = शाक का ऊपरवाला हिस्सा तो ठीक दीखता है किन्तु नीचे जला हुआ है।
गृहस्य उपरिष्टात् दीपावल्या शोभनं दृश्यते = घर का ऊपर का हिस्सा दीपकों की माला के कारण सुन्दर दीख रहा है।
कनुकाका अस्माकं पश्चात् वसति = कनुकाका हमारे पीछे रहते हैं।
मम पश्चादागतस्त्वं मम पुरतः कथं तिष्ठसि ? = मुझसे बाद में आया तू मुझसे आगे कैसे खड़ा हो रहा/रही है ?
अस्माकं भारतस्य पुरस्ताद् निर्धनाः प्रान्ताः सन्ति = हमारे भारत के पूर्व दिशा के प्रान्त निर्धन है।
ये भारतस्य पश्चात् वसन्ति ते पाश्चात्याः कथ्यन्ते = जो भारत के पश्चिम में रहते हैं वे पाश्चात्य कहलाते हैं।
मध्यप्रदेशस्य दक्षिणतो निवसन्तः जनाः दाक्षिणात्याः उच्यन्ते = मध्यप्रदेश के दक्षिण में रहनेवाले लोग दाक्षिणात्य कहे जाते हैं।
तस्य उत्तरतो ये वसन्ति ते औदीच्याः कथ्यन्ते = उसके उत्तर में रहनेवाले लोग औदीच्य कहलाते हैं।

(एनप् प्रत्ययान्त के साथ प्रायः द्वितीया का प्रयोग होता है, किन्तु कहीं कहीं षष्ठी का भी प्रयोग होता है।)
विद्यालयस्य उत्तरेण ग्रामो वर्तते = विद्यालय के उत्तर में गांव है।
मम प्रकोष्ठं दक्षिणेनाऽऽचार्यस्य प्रकोष्ठोऽस्ति = मेरे कमरे के दक्षिण में आचार्य का कमरा है।
बहवो जनाः भारतस्य दक्षिणेन आगत्य उत्तरेण वसति = बहुत सारे लोग दक्षिणभारत से आकर उत्तर में बसते हैं।
व्यापाराय पुनः केचन भारतम् उत्तरेण आगत्य दक्षिणेन निवसति = व्यापारार्थ कुछ लोग उत्तर भारत से आकर दक्षिण में बसते हैं।

(तुल्यवाची शब्दों के साथ षष्ठी व तृतीया दोनों का प्रयोग होता है, किन्तु ‘तुला’ व ‘उपमा’ इन दो शब्दों के साथ केवल षष्ठी का ही प्रयोग होता है।)

अच्छबुद्धेः अच्छबुद्ध्या वा सदृशं रत्नं न विद्यते = निर्मल बुद्धि के समान और कोई रत्न नहीं है।
नास्ति जगत्यस्मिन्नु़त्तमं ज्ञानेन ज्ञानस्य वा तुल्यम् = इस संसार में ज्ञान के समान और कुछ भी उत्तम नहीं है।
श्रवणस्य श्रवणेन वा समानः पितृभक्तो दुर्लभः = श्रवण के समान पितृभक्त दुर्लभ है।
राजनीतिज्ञेषु कृष्णस्य तुला नास्ति = राजनीतिज्ञों में कृष्ण की बराबरी का कोई नहीं है।
कविषु कालिदासस्य उपमा नास्ति = कवियों में कालिदास की उपमा नहीं है।
ईश्वरस्योपमा नास्ति, अतः सः अनुपमः कथ्यते = ईश्वर की उपमा नहीं है इसलिए वह अनुपम कहाता है।
यदि सर्वे पतयः रामेण रामस्य वा सदृशाः अभविष्यन् तर्हि सर्वाः पत्न्योऽपि सीतया सीतायाः वा सदृश्योऽभविष्यन् = यदि समस्त पतिगण राम जैसे होंगे तो उनकी पत्नियां भी सीता के तुल्य हो जाएंगी।
योगविद्या सदृशी काऽपि विद्या नास्ति = योगविद्या जैसी कोई अन्य विद्या नहीं है।
लक्ष्मीबाय्याः तुल्या वीरांगना न दृश्यतेऽद्य भूतले = आज संसार में लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगना नहीं दिखाई देती है।
ईशाज्ञापालनं समाना श्रेष्ठा भक्तिर्नास्ति = ईश्वराज्ञापालन जैसी अन्य कोई श्रेष्ठ ईशभक्ति नहीं है।

(आयुष्य, मद्र, भद्र, कुशल, सुख, अर्थ, हित इन शब्दों के साथ जिसे आशीर्वाद दिया जाता है उसमें विकल्प से षष्ठी विभक्ति होती है।)

यजमानस्य यजमानाय वा भद्रं भूयात् = यजमान का कल्याण होवे।
दातुः दीर्घायुष्यं स्यात् = दाता को लम्बी आयु मिले।
छात्राणां छात्रेभ्यो वा शुभं भूयात् = छात्रों का कल्याण हो।
सर्वेषां सर्वेभ्यो वा सुखं स्यात् = सब को सुख मिले।
बालेभ्यः मद्रं स्यात्, युवभ्योऽर्थः वृद्धेभ्यश्च कुशलम् = बालकों को प्रसन्नता मिले, युवाओं का प्रयोजन सिद्ध हो, वृद्धों का कल्याण हो।

विसर्ग सन्धिः

{विसर्जनीयस्य सः। विसर्ग के बाद (च्, छ्, त्, थ्, ट्, ठ्, श्, ष्, स् हों तो विसर्ग को स् हो जाता है) चवर्ग (च्, छ्) बाद में होंगे तो श्चुत्वसन्धिः नियम से ‘स्’ को ‘श्’ और ट वर्ग (ट् ठ्) बाद में होंगे तो ष्टुुत्वसन्धिः नियम से ‘स्’ को ‘ष्’ होगा।}
: + (च्, छ्, त्, थ्, ट्, ठ्, श्, ष्, स्) हों तो  : = स्

हरिः + त्रायते = हरिस्  त्रायते = हरिस्त्रायते।
रामः + चलति = रामस् चलति = रामश्चलति। (श्चुत्वसन्धिः)
श्यामः + छिनत्ति = श्यामस् छिनत्ति = श्यामश्छिनत्ति। (श्चुत्वसन्धिः)
बालः + टीकते = बालस् टीकते = बालष्टीकते। (ष्टुुत्वसन्धिः)
सर्पः + सरति = सर्पस् सरति = सर्पस्सरति।
रामः + षष्ठः = रामस् षष्ठः = रामष्षष्ठः। (ष्टुुत्वसन्धिः)
बालः + शेते = बालस् शेते = बालश्शेते। (श्चुत्वसन्धिः)

बालः + तावत् = बालस्तावत्।
क्रीडासक्तः + तरुणः + तावत् = क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत्।
वृद्धः + तावत् = वृद्धस्तावत्।
बालस्तावत्क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः परमे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः।। बच्चा खेल में लगा हुआ है, युवा युवती में फंसा हुआ है, बूढ़ा चिन्ताओं में लगा हुआ है, परमब्रह्म से कोई भी जुड़ा नहीं है।

पण्डितैः + सह = पण्डितैस् सह = पण्डितैस्सह।
पण्डितैस्सह सांगत्यं पण्डितैस्सह संकथा।
पण्डितैस्सह मित्रत्वं कुर्वाणो नावसीदति।। = पण्डितों के साथ संगति करनेवाला, पण्डितों के साथ संवाद करनेवाला, पण्डितों के साथ मैत्री रखनेवाला कभी अवनति को प्राप्त नहीं होता।

विजयः + च = विजयस् च = विजयश्च।
मृत्युः + च = मृत्युस् च = मृत्युश्च।
यस्य प्रसादे पद्माऽऽस्ते विजयश्च पराक्रमे।
मृत्युश्च वसति क्रोधे सर्वतेजोमयो हि सः।। = जिस व्यक्ति के प्रसन्न हो जाने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, जिसके पराक्रम करने पर निश्चित विजय होती है और जिसके क्रोध करने पर दुष्टों की मृत्यु अवश्य होती है, वही व्यक्ति सम्पूर्ण तेजों से युक्त है।



इति

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