यत्र कर्मादि कारकेषु सम्बन्ध: बोधनीय: भवति तत्रापि षष्ठी विभक्ति: विद्यते ।
यथा : - सतां गतम् - सज्जनों का जाना
सर्पिषो जानीते - घी के द्वारा प्रवित्त होता है ।
मातु: स्मरति - माता को स्मरण करता है ।
एधोदकस्योपस्कुरुते - लकडी जल को परिष्कृत करती है
भजे शम्भोश्चरणयो: - शम्भु के चरणों का भजन करता हूँ ।
फलानां तृप्ति: - फलों से तृप्त ।
हिन्दी -
जहाँ पर कर्म आदि कारकों में सम्बन्ध बताना हो वहाँ भी षष्ठी विभक्ति ही होती है ।
इति
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