प्रकृतिपुरुषविवेकद्वारा नि:श्रेयसस: प्राप्ति: इति सांख्ये स्वीकृतमस्ति ।
सांख्यशास्त्रे पंचविंशति: तत्वानि स्वीकृयते । एतेषां तत्वानां चतुर्विभाग: कृत: अस्ति । एते विभागा:, तत्वानि च सन्ति अधोक्तानि -
केवलं कारणम् - प्रकृति: (प्रधान, त्रिगुणात्मिका)
कारणं च कार्यं च - महत् (बुद्धि:), अहंकार:, पंचतन्मात्रा:
केवलं कार्यम् - एकादशेन्द्रियाणि, पंचमहाभूतानि च
न कारणं नैव कार्यम् - पुरुष:
पंचविशतितत्वानां उत्पत्ति: -
एतानि पंचविंशतितत्वानि कथं सम्भवन्ति, कानि तत्वानि केन-केन च भवन्ति इति विवेच्यते ।
मूलं तु प्रकृतिरेवास्ति । अस्या: उत्पत्ते: किमपि कारणं नास्ति । यदि अस्यापि कारणं मन्यते चेत् अनवस्था दोष: भविष्यति अत: अस्या: उत्पत्ति: नैव भवति । इयं तु सर्वदा, सर्वकालेषु विद्यमाना भवति । एतदनन्तरम् उत्पत्तिक्रम: अधोक्त: -
प्रकृति: - महत् (बुद्धि:) - अहंकार: - पंचतन्मात्रा:, एकादशेन्द्रियाणि च
पंचतन्मात्रा: - पंचमहाभूतानि
पुरुष: (न तु प्रकृति: न च विकृतिरेव)
हिन्दी - सांख्य में प्रकृति पुरुष विवेक से मोक्ष (नि:श्रेयस) की प्राप्ति स्वीकृत है । सांख्य में 25 तत्वों की स्वीकार्यता है । इन 25 तत्वों में कुछ तो प्रकृति (कारण) हैं, कुछ प्रकृति-विकृति (कारण-कार्य) हैं, कुछ केवल विकृति (कार्य) हैं तथा कुछ न तो कारण हैं न ही कार्य हैं । इनका विवरण संक्षेप में नीचे दिया जा रहा है ।
मूल प्रकृति (केवल कारण)
महत् (बुद्धि), अहंकार, पंचतन्मात्राएँ (कारण भी और कार्य भी)
एकादशेन्द्रियाँ, पंचमहाभूत (केवल कार्य)
पुरुष (न कार्य न ही कारण)
इनमें किसकी उत्पत्ति किससे होती है संक्षेप में जान लें
प्रकृति मूल है, इसकी किसी से उत्पत्ति नहीं होती है, यह सार्वभौमिक व सार्वकालिक है । इसलिये यह केवल उत्पादक है, स्वयं उत्पन्न होने वाली नहीं ।
शेष क्रम निम्न है -
प्रकृति से महत् (बुद्धि)
बुद्धि से अहंकार
अहंकार से पंचतन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध) व एकादश इन्द्रियाँ (पंचज्ञानेन्द्रियाँ - कान, त्वचा, आंख, जिह्वा तथा नाक, पंचकर्मेन्द्रियाँ - वाक्, पाद, पाणि, पायु, उपस्थ, एक उभयेन्द्रिय - मन) ।
पंचतन्मात्राओं से पंचमहाभूत (शब्द - आकाश, स्पर्श - वायु, रूप - अग्नि, रस - जल, गन्ध - पृथ्वी)
पुरुष (न उत्पादक न ही उत्पाद्य)
इति
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