संज्ञाप्रकरणम्
मङ्गलाचरणम्
पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीम् ।।
अन्वय: - अहं शुद्धां गुण्यां सरस्वतीं देवीं नत्वा पाणिनीयप्रवेशाय लघुसिद्धान्तकौमुदीं करोमि ।
भावार्थ: - मैं वरदराज, शुद्ध और उत्तमगुणवाली सरस्वती देवी को प्रणाम करके महर्षि पाणिनि द्वारा रचित व्याकरणशास्त्रीय ग्रन्थ अष्टाध्यायी में (जिज्ञासु पाठकों के) प्रवेश के लिये 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' ग्रन्थ की रचना करता हूँ ।
टिप्पणम् -
1. समाप्तिकामो मङ्गलमाचरेत् - ग्रन्थ की निर्विघ्न समाप्ति की इच्छा करने वाले को मंगलाचरण करना चाहिए । अतः शिष्टाचार के अनुसार ग्रन्थ की निर्विघ्नसमाप्ति के लिये यह मंगलाचरण किया गया है
2. प्रयोजनमनुद्दिश्य मन्दोपि न प्रवर्तते - बिना किसी प्रयोजन के मूर्ख व्यक्ति भी किसी कार्य में प्रवृत्त नहीं होता है अतः इस ग्रन्थ का प्रयोजन कथन 'पाणिनीय व्याकरण अष्टाध्यायी में सुगमता से प्रवेश' किया गया है ।
3. लघुसिद्धान्तकौमुदी व्याकरण का एक प्रकरण ग्रन्थ है जिसके रचयिता आचार्य भट्टोजिदीक्षित के शिष्य आचार्य वरदराज हैं । आचार्यप्रवर नें पाणिनीय अष्टाध्यायी को सुगमता और प्रासंगिकता के आधार पर लघु करते हुए अष्टाध्यायी के मात्र 1275 सूत्रों तथा उनसे सम्बन्धित वार्तिकों के साथ इस ग्रन्थ की रचना की । यह ग्रन्थ आज के समय में व्याकरण के क्षेत्र में सर्वाधिक पढा जाने वाला ग्रन्थ है ।
इति
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें