इत्‍संज्ञासूत्रम् ।।



इत्‍संज्ञासूत्रम्


1. हलन्‍त्‍यम् । 01 । 03 । 03 ।।
 उपदेशेSन्‍त्‍यं हलित्‍स्‍यात् ।

      उपदेश अवस्‍था में अन्‍त में होनेवाला व्‍यञ्जन वर्ण इत् होता है । अर्थात् उपदेश की अवस्‍था में किसी भी वर्णसमुदाय के अन्तिम हल् वर्ण (व्यञ्जन वर्ण् ) की इत् संज्ञा होती है ।

उक्‍त सूत्र के अर्थ को स्‍पष्‍ट करने के लिये पूर्वोक्‍त सूत्रों से उपदेश तथा इत् इन दो शब्‍दों की अनुवृत्ति की गई है ।

उपदेशः -

उपदेश आद्योच्‍चारणम् -व्‍याकरणशास्‍त्र के आदि उच्‍चारण (आदि वैयाकरणों के शब्‍द) उपदेश कहे जाते हैं । अर्थात् व्‍याकरणशास्‍त्र की रचना करने वाले आदि आचार्यों ''पाणिनि, कात्‍यायन तथा पतञ्जलि'' के वाक्‍यों को ही उपदेश कहते हैं । इनमें भी पाणिनि के वाक्‍यों की प्रमुखता समझनी चाहिए ।

धातुसूत्रगणोणादिवाक्‍यलिङ्गानुशासनम् । 
आगमप्रत्‍ययादेशा उपदेशाः प्रकीर्तिताः ।।

धातु, सूत्र (अष्‍टाध्‍यायी), गण, उणादि, लिङ्गानुशासन, आगम, प्रत्‍यय और आदेश, इनको उपदेश कहते हैं । धातुपाठ, सूत्रपाठ, गणपाठ, उणादिसूत्र और लिङ्गानुशासन, ये पॉंच मिलकर व्‍याकरण कहे जाते हैं । इन पॉंचों की ही रचना महर्षि पाणिनि ने की थी ।

अनुवृत्तिः -

सूत्रेष्‍वदृष्‍टं पदं सूत्रान्‍तरादनुवर्तनीयं सर्वत्र - सूत्रों में जो पद दिखाई न दें उन्‍हें आवश्‍यकतानुसार अपने से पूर्व सूत्रों से ग्रहण करना चाहिये । पूर्वोक्‍त सूत्राें से ग्रहण करने की इस प्रक्रिया को अनुवृत्ति कहते हैं । उदाहरणार्थ -'हलन्‍त्‍यम' सूत्र के अर्थ को स्‍पष्‍ट करने के लिये उसके पूर्वोक्त सूत्र 'उपदेश‍ेSजनुनासिक इत्' से उपदेशे और इत् पद की अनुवृत्ति करके सूत्रार्थ को स्‍पष्‍ट किया गया ।

इत् संज्ञा - 

14 माहेश्‍वर सूत्रों के सभी अन्‍त्‍य वर्ण इत्‍संज्ञक हैं, इसी तरह कई प्रत्‍ययों के आदि वर्ण अथवा अन्‍त्‍य वर्ण इत्‍संज्ञक होते हैं । इत् उपदेश में वे वर्ण होते हैं जिनकी उपस्थिति होते हुए भी उनका लोप दिखाना होता है, अर्थात् जिन विशेष वर्णों के ग्रहण की अपेक्षा नहीं की जाती उनकी विभिन्‍न सूत्रों से इत् संज्ञा कर दी जाती है जिसके बाद उनका ग्रहण नहीं किया जाता, उनका लोप हो जाता है । हलन्‍त्‍यम् सूत्र के अतिरिक्‍त भी इत्‍संज्ञा विधायक कई सूत्र हैं जिनका आगे यथास्‍थान निर्देश किया जाएगा ।
लोप क्‍या है यह हम आगे के सूत्रों में देखेंगे । 

इति

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