माहेश्वरसूत्राणि
।। १. अइउण् । 2. ऋलृक् । 3. एओङ् । 4. ऐऔच् । 5. हयवरट् । 6.लण् । 7. ञमङणनम् । 8. झभञ् । 9. घढधष् । 10. जबगडदश् । 11. खफछठथचटतव् । 12. कपय् । 13. शषसर् । 14. हल् ।।
इति माहेश्वराणि सूत्राण्यणादिसंज्ञार्थानि ।
महेश्वरादागतानीति माहेश्वराणि ।
महर्षि पाणिनि को भगवान् शङ्कर की कृपा से प्राप्त होने के कारण इन्हें माहेश्वर सूत्र कहा जाता है । इनके ही आधार पर महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी की 3978 सूत्रों में रचना की थी ।
नन्दिकेश्वरस्य कारिकायां यथा -
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम् ।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ।।
पाणिनीयशिक्षायाम् -
येनाक्षरसमाम्नायमधिगम्य महेश्वरात्
कृत्स्नं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मै पाणिनये नमः ।।
''अइउण्'' आदि चतुर्दशसूत्र 'अक्षरसमाम्नाय' कहे जाते हैं, इन्हें वर्णसमाम्नाय भी कहा जाता है । इन सभी सूत्रों के अन्तिम वर्ण इत् संज्ञक हैं । इस तरह से कुल 14 इत् वर्ण (ण्, क्, ङ्, च्, ट्, ण्, म्, ञ्, ष्, श्, व्, य्, र्, ल्) हैं । शास्त्र को छोटा करने के लिये इन्हीं सूत्रों से इत् वर्णों की सहायता से प्रत्याहार बनाये जाते हैं । प्रत्याहार निर्माण और उनका प्रयोग आप आगे के सूत्रों में देखेंगे ।
ध्यातव्यम् -
1. प्रत्याह्र्रियन्ते संक्षिप्यन्ते वर्णा यत्र स प्रत्याहारः - जिसमें वर्णों का संक्षेप किया जाए उन्हें प्रत्याहार कहते हैं ।
2. इत्संज्ञकत्वम्, इत्संज्ञायोग्यत्वम् अनुबन्धत्वम् - जिनकी इत्संज्ञा होती है अथवा जो इत्संज्ञा के योग्य होते हैं उन्हें अनुबन्ध कहा जाता है ।
इति
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