उच्चारणस्थान
स्थान और प्रयत्नों में से (उच्चारण) स्थानों का परिचय
(कण्ठ – अ आ अ3 क ख ग घ ङ ह विसर्ग)
इचुयशानां तालु
(तालु – इ ई इ3 च छ ज झ ञ य श)
ऋटुरषाणां मूर्धा
(मूर्धा – ऋ ऋृ ऋ3 ट ठ ड ढ ण र ष)
लृतुलसानां दन्ताः
(दॉंत – लृ लृ3 त थ द ध न ल स)
उपूपध्मानीयानामोष्ठौ
(ओष्ठ – उ ऊ उ3 प फ ब भ म उपध्मानीय प, फ)
ऐदैतोः कण्ठतालु
(कण्ठ-तालु – ए ऐ)
ओदौतोः कण्ठोष्ठम्
(कण्ठ-ओष्ठ – ओ औ)
ञमङणनानां नासिका च
(मुख-नासिका – ङ ञ ण न म)
वकारस्य दन्तोष्ठम्
(दन्त-ओष्ठ – व)
जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम्
(जिह्वामूल – जिह्वामूलीय क, ख)
नासिकाSनुस्वारस्य
(नासिका – अनुस्वार)
ध्यातव्य – सूत्रों में अ‚ इ‚ उ‚ ऋ‚ लृ स्वरों के ह्रस्व स्वरूप तथा ए‚ ऐ‚ ओ‚ औ के दीर्घ स्वरूप का प्रयोग ही किया गया है‚ किन्तु व्याख्या में उन स्वरों से सम्बन्धित उनके सभी (ह्रस्व‚ दीर्घ‚ प्लुत) स्वरूपों को दर्शा दिया गया है । वस्तुतः सूत्रों में केवल प्रतिनिधि स्वरों को ही रखा गया है‚ उन स्वरों से उनके सभी (18 अथवा 12) भेदों को समझना चाहिए ।
शंकासमाधान –
कु चु टु तु पु – सूत्रों में कवर्ग के लिये कु‚ च वर्ग के लिये चु आदि का प्रयोग किया गया है । ‘कुचुटुतुपु एते उदितः‘ के अनुसार कु चु टु तु पु को उदित कहा जाता है क्योंकि इनमें उकार इत् संज्ञक हैं‚ अर्थात् उकार का लोप हो जाता है । उदितों का काम है ‘कहे जाने पर अपने वर्ग के सभी वर्णों का संकेत करना‘ । अर्थात् कु मात्र कहने से क‚ ख‚ ग‚ घ और ङ का बोध होता है । इसी तरह चु कहने से चवर्ग‚ टु कहने से टवर्ग‚ तु कहने से तवर्ग और पु कहने से पवर्ग समझना चाहिए ।जिह्वामूलीय – जिह्वामूलीय के अन्तर्गत दो वर्ण क और ख आते हैं । इनका उच्चारण जब जीभ के मूलस्थान से किया जाए तो इन्हे जिह्वामूलीय कहा जाता है । तब इनका उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है । सामान्य परिस्थिति में इनका उच्चारण स्थान कण्ठ ही होता है ।
उपध्मानीय – उपध्मानीय के अन्तर्गत प और फ वर्ण आते हैं । जब इन वर्णों के उच्चारण के पहले अर्धविसर्ग जैसा उच्चारण किया जाए तो ये दोनों वर्ण उपध्मानीय कहलाते हैं । इनका उच्चारण स्थान ओष्ठ ही होते हैं ।
विशेष – जिह्वामूलीय और उपध्मानीय वर्णों का उच्चारण नुक्ता वाले वर्णों की तरह किया जाता है । सम्भवतः अरबी‚ फारसी‚ उर्दू आदि भाषाओं में नुक्ते का प्रयोग इन्हीं वर्णों के प्रयोग से प्रेरित होकर हुआ हो । जिह्वामूलीय और उपध्मानीय वर्णों का संकेत छोटे कोष्ठक को उल्टे क्रम में ऊपर से नीचे की ओर लिखकर दर्शाया जाता है । ऊपर दिये गये चित्र में आप जिह्वामूलीय व उपध्मानीय का चिह्न उक्त स्थानों पर देखकर समझ सकते हैं ।
इति
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