सवर्णसंज्ञासूत्रम्
तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम् ।।01/01/09।।
ताल्वादिस्थानमाभ्यन्तरप्रयत्नश्चेत्येतद् द्वयं यस्य येन तुल्यं तन्मिथः सवर्णसंज्ञं स्यात् ।
तालु आदि स्थान और आभ्यन्तर आदि प्रयत्न, ये दोनों जिस-जिस वर्ण के समान हों वे वर्ण परस्पर सवर्ण संज्ञा वाले हों। अर्थात् जिन वर्णों के उच्चारण स्थान व प्रयत्न समान होते हैं उनकी सवर्ण संज्ञा होती है अथवा उन्हें सवर्ण कहा जाता है ।
ऋलृवर्णयोर्मिथः सावर्ण्यं वाच्यम् (वार्तिकम्)
ऋ और लृ वर्ण की परस्पर सवर्ण संज्ञा कहनी चाहिए, अर्थात् इन दोनों की स्थान भिन्न होने पर भी सवर्ण संज्ञा होती है । ऋ का उच्चारण स्थान मूर्धा है जबकि लृ का उच्चारण स्थान दन्त है, फिर भी इस वार्तिक से इनकी परस्पर सवर्ण संज्ञा करायी गयी है जिसका फल आगे जानेंगे ।
तुल्य + आस्य + प्रयत्नम् = तुल्यास्यप्रयत्नम्
तुल्यम् = समानम्
आस्यम् = आस्ये मुखे भवम् आस्यं स्थानम् । (आस्य = मुख)
प्रयत्नम् = प्रकृष्टो यत्नः प्रयत्नः । आभ्यन्तरप्रयत्न इत्यर्थः । भली भाँति किया गया यत्न ही प्रयत्न है । ये दो प्रकार के होते हैं‚ आभ्यन्तर और बाह्य ।
इत्युक्ते मुख के अन्दर के विभिन्न स्थानों में वर्णोच्चारण हेतु भली भाँति किया गया यत्न ही प्रयत्न है । इसके दो प्रकार होते हैं‚ आभ्यन्तर और बाह्य । इनके विषय में आगे विस्तार से जानेंगे ।
इति
1 टिप्पणियाँ
बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएंअद्भुत लेख!
Hindi Panda