मनुस्मृति प्रथम अध्याय - सृष्टिरचना वर्णन (प्रक्षेप सहित)

सभी महर्षि एकान्त में विराजमान मनु महाराज के पास जिज्ञासापूर्वक जाते हैं और आग्रह करते हैं -

भगवन् आप सभी धर्माधर्म‚ यज्ञ-तपादि‚ वेद-वेदांग आदि को जानने वाले हैं अतः आप सभी वर्णोंवर्णसंकरों के धर्म का उपदेश करें । 

भगवान् मनु द्वारा उपदेश

महाराज मनु ने सभी का आदर सत्कार करने के बाद सृष्टिवर्णन से प्रारम्भ करते हुए सबसे पहले ब्रह्म का वर्णन किया‚ इसके अनन्तर पृथ्वी‚ द्‍युलोक‚ अंतरिक्ष की उत्पत्ति का वर्णन‚ दिशाओं का निर्माण‚ सभी इन्द्रियों सहित मन की उत्पत्ति‚ त्रिगुणों व इन्द्रियविषयों की उत्पत्ति‚ पंचमहाभूतों‚ सभी प्रकार के प्राणियों के शरीर तथा नाम‚ कर्मादि की व्यवस्था के निर्माण का वर्णन किया । चारो वेदों और समग्र प्रधान देवों‚ समय‚ वर्ष‚ मास‚ पक्ष‚ तिथि‚ प्रहर‚ घटिका‚ पल‚ कला ‚ काष्ठा इत्यादि काल विभाग‚ नक्षत्र‚ ग्रह‚ नदी‚ पर्वत‚ समुद्र‚ उच्चावचभूमि‚ प्रजा‚ काम-क्रोधादि का वर्णन सहित चारों वर्णों का भगवान् के विविध अंगों से उत्पन्न होना बताया ।

इसके अनन्तर 10 प्रजापति महर्षियों का वर्णन - 

  1. मरीचि  
  2. अत्रि 
  3. अंगिरस् 
  4. पुलस्त्य
  5. पुलह
  6. क्रतु
  7. प्रचेतस्
  8. वसिष्ठ
  9. भृगु
  10. नारद

 इसी क्रम में सात मनुओं‚ अन्य देवों व महर्षियों की उत्पत्ति‚ यक्ष‚ राक्षस‚ पिशाच‚ गन्धव‚ अप्सरा‚ नाग‚ सर्प‚ सुपर्ण‚ पितरों के समूह‚ विद्‍युत‚ अशनि‚ मेघ‚ इन्द्रधनुष‚ उल्काएँ‚ निर्घात‚ केतु‚ नाना प्रकार के तारे‚ किन्नर‚ वानर‚ मत्स्य सहित विभिन्न पशु‚ पक्षी‚ कीट‚ कृमि‚ जुएँ‚ मक्खी‚ खटमल‚ मच्छर आदि छुद्रजीव‚ वृक्ष-लताएँ आदि विविध चीजों की उत्पत्ति का वर्णन किया ।

ध्यातव्य - विद्वानों के अनुशीलन से यह प्रकाश में आया है कि श्लोक संख्या ३३ से ४१ तक के श्लोक प्रक्षिप्त हैं । इनमें किया गया वर्णन भी पुराणादि शास्त्रों से मेल नहीं खाता । और साथ ही इसके पहले व बाद के श्लोकों से इसकी तारतम्यता नहीं दिखाई देती । पुनश्च बाद के श्लोकों में भी उन्हीं विषयों की पुनरुक्ति दिखाई देती है ।

आगे के श्लोकों में जरायुज‚ अण्डज‚ स्वेदज तथा उद्भिज प्राणिभेद का वर्णन तथा वनस्पतियों के प्रकार आदि का वर्णन किया गया है । इस प्रकार महाराज मनु ने संसार के उत्पत्तिकर्ता ब्रह्मा से लेकर समस्त स्थावज-जंगमादि का उत्पत्तिक्रम वर्णन किया साथ ही परमात्मा के द्वारा जगत् की बारम्बार उत्पत्ति व लय का वर्णन किया ।

आगे मनु महाराज कहते हैं कि इस धर्मशास्त्र को सृष्टि के आरम्भ में स्वयं भगवान् ब्रह्मा ने रचा तथा मनु महाराज को उसका उपदेश किया और इसके अनन्तर मनु महाराज ने इसे मरीचि आदि मुनियों को दिया ।

इसके बाद मनु महाराज ने कहा कि आगे का पूरा धर्मशास्त्र वर्णन महात्मा भृगु  आप लोगों को सुनाएँगे । इन्होंने यह सारा मुझसे विधिवत ग्रहण किया है । भगवान् मनु की आज्ञा पाकर महात्मा भृगु ऋषियों को आगे का वर्णन करना प्रारम्भ करते हैं ।

महात्मा भृगु द्वारा वर्णन -

महात्मा भृगु ने मनुवंश का वर्णन करते हुए छः अन्य मनुओं का पराक्रम व उनके द्वारा की गयी सृष्टि रचना का वर्णन किया । ये छः मनु क्रमश निम्न हैं -

  1. स्वारोचिष
  2. औत्तम
  3. तामस
  4. रैवत
  5. चाक्षुष तथा
  6. वैवस्वत

विशेष - कुछ विद्वानों के अनुसार श्लोक संख्या ५८ से ६३ तक भी प्रक्षिप्त हैं व इनके विषय भी पुनरुक्त हैं ।

इसके अनन्तर कालवर्णन प्रारम्भ होता है । यह कालवर्णन अत्यन्त सूक्ष्म से अत्यन्त विस्तृत है अतः इसका वर्णन अगले लेख में प्रस्तुत किया जाएगा । इस लेख में श्लोकसंख्या १ से ६३ तक (प्रक्षेपों सहित) का संक्षिप्त सार वर्णन किया गया है । इनका संक्षिप्त वर्णन परिचय मात्र के लिये दिया जा रहा है क्यूँकि इनका विस्तार हमारा अभीष्ट नहीं है ।

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