व्याघ्रचर्मावृतगर्दभकथा ।
हस्तिनापुर में विलास नाम का एक धोबी रहता था । उसका गधा बहुत बोझ ढोने से दुर्बल होकर मरणासन्न हो गया था । तब उस धोबी ने उसे चीते की खाल ओढा कर‚ जंगल के समीप अन्न के किसी खेत में छोड़ दिया ।
बाघ की खाल धारण करने के कारण खेत के मालिक उसे बाघ ही समझने लगे और भय के कारण खेत छोड़कर भाग गये ।
इस तरह वह गधा नित्य ही निर्द्वन्द्व होकर लोगों के खेत चरने लगा । उसके दिन मजे से बीतने लगे ।
उधर खेत के मालिक अपने खेतों से बाघ (खाल ओढे हुए गधे) को भगाने का उपाय सोचने लगे ।
कुछ समय के बाद एक दिन एक खेत का रखवाला धूसर रंग का कंबल ओढकर‚ धनुष-बाण हाथ में लेकर‚ बाण चढाकर‚ उस बाघ को भगाने के लिये छुप-छुपाकर खेत के एक कोने में बैठ गया ।
खेत में इच्छापूर्वक अन्न खाने से बलवान और पुष्ट शरीर वाला वह गधा‚ 'यह भी कोई गधा ही है' ऐसा समझकर रेंकते हुए उसकी ओर दौड़ा ।
बाघ की काया से गधे के रेंकने की आवाज सुनकर खेत का मालिक जान गया कि यह गधा ही है । गधे को पहचान जाने के कारण उसका भय समाप्त हो गया और उसने समीप आते हुए गधे को अपने पैने बाणों से सहजता से मारकर गिरा दिया ।
इस तरह से बहुत समय से खेतों में निःशंक चरता मन्दबुद्धि गधा केवल अपने बोलने मात्र से ही मृत्यु को प्राप्त हो गया ।
हितोपदेश
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