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हाथी और खरगोश की कथा ।

गजशशककथा


 

एक जंगल में हाथियों का बहुत बड़ा समूह बड़े सुख से रहा करता था । एक समय ऐसा सूखा पड़ा कि वर्षाऋतु में भी वर्षा नहीं हुई जिसके कारण जंगल के सभी जलाशय सूख गये । प्यास से व्याकुल हाथियों ने अपने यूथपति से कहा - स्वामी ǃ हमारे जीवन का अब क्या उपाय है‚ जंगल के सभी जलाशयों में क्षुद्र जीवों के भी पीने और नहाने लायक जल शेष नहीं है; और हम लोग बिना नहाये और बिना जल पिये मृतक और अन्धे के समान होते जा रहे हैं । अतः आप ही कुछ उपाय निकालिये ।


हाथियों की बात सुनकर यूथपति ने सबको आश्वासन दिया और अपने गुप्तचरों के द्वारा पास के ही किसी अन्य पर्वत पर बसे जंगल में एक जलाशय खोज निकाला । वह चन्द्रसरोवर नामक जलाशय बहुत ही बड़ा और अथाह जल से परिपूर्ण था । उसके आसपास का वन भी खूब हराभरा था ।

हाथियों का झुण्ड उस जलाशय को देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ । सभी ने जलाशय में खूब जी भर कर जल पिया और स्नान किया ।

उसी जलाशय के किनारे के विवरों में खरगोशों का समाज रहता था । हाथियों के आने-जाने से उनकी ठोकरों से और उनके पैरों के नीचे आ जाने के कारण खरगोश मरने लगे । तब खरगोशों ने सभी बुलाई और अपने मुखिया को इस समस्या का समाधान करने की गुहार की ।

शिलीमुख नामक खरगोशों के मुखिया ने खरगोशों को हाथियों के आतंक से मुक्ति दिलाने की शपथ ली । ऐसी प्रतिज्ञा करके वह चला और जाते-जाते उसने अपने मन में विचार किया कि मैं उन हाथियों के झुण्ड के समीप जाकर कैसे बोलूँगा ॽ

पर्याप्त विचार कर लेने पर वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि हाथियों के समीप जाकर उनसे बात करने की अपेक्षा पर्वत की चोटी पर खडे़ होकर उनसे बात करना अधिक उचित है; इससे उसके प्राणों को भी कोई संकट उत्पन्न नहीं होगा । ऐसा विचारकर शिलीमुख खरगोश पर्वत की चोटी पर जा चढा और हाथियों के राजा को सम्बोधित करते हुए बोला - हे गजराजǃ मैं भगवान् चन्द्रमा का दूत शिलीमुख नामक खरगोश हूँ । मैं भगवान् शशांक का संदेश लेकर आपके पास आया हूँ ।

हाथियों का राजा बोला - कहिये‚ भगवान् चन्द्रमा का क्या संदेश है ।

शिलीमुख बोला - भगवान् चन्द्र ने कहा है‚ जो चन्द्रसरोवर के रक्षक खरगोश तुमने निकाल दिये हैं‚ यह तुमने बड़ा क्रूर कार्य किया है; वे खरगोश चिरकाल से मेरे द्वारा ही पाले गये हैं‚ इसी से मेरा 'शशांक' नाम भी प्रसिद्ध है ।

दूत के यह कहने पर हाथियों का यूथपति भय से बोला - क्षमा करिये‚ यह अपराध बिना जाने ही हमलोगों से हो गया है । फिर ऐसा कभी नहीं होगा ।

दूत बोला - यदि ऐसा है तो इस सरोवर में कोप से काँपते हुए भगवान् शशांक को प्रणाम करके और उन्हें प्रसन्न करके आप यहाँ से कहीं अन्यत्र चले जाइये ।

ऐसा कहकर रात के समय हाथियों के राजा को सरोवर के पास ले जाकर‚ जल में हिलते हुए चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब दिखाकर यूथपति से प्रणाम करने के लिये कहा । यूथपति ने डरते-डरते प्रणाम करके अपने अपराधों की क्षमा याचना की । इसके बाद खरगोश ने चन्द्रमा से कहा - हे देव ǃ इनसे यह अपराध अनजाने में हो गया था‚ अतः आप इन्हें क्षमा करें । ये पुनः ऐसा नहीं करेंगे ।

ऐसा कहकर खरगोश ने हाथियों को वहाँ से विदा करा दिया । इस तरह से चतुर खरगोश ने अपनी चालाकी से सभी खरगोशों का जीवन सुरक्षित कर दिया ।
 
हितोपदेश
 

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