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बूढे बाघ और लालची पथिक की कथा


एक समय की बात है । एक बूढा बाघ नदी में नहाकर‚ हाथ में कुश लेकर नदी के किनारे बैठा आने जानेवाले लोगों से कह रहा था‚ ʺमेरे पास सोने का कंगन है जिसे मैं किसी भले व्यक्ति को दान देने चाहता हूँ । जिसको आवश्यकता हो आकर ले ले ।ʺ

आने-जाने वाले लोग उसे देखकर रास्ता बचाकर निकल जा रहे थे । तभी वहाँ एक पथिक आया । बाघ की बात सुनकर उसके मन में लालच आ गई । उसने बाघ से कहा‚ ʺअपना कंगन तो दिखाओʺ । बाघ ने अपने हाथ में सोने का एक मोटा सा कंगन निकालकर दिखाया ।

युवक ने पूछा‚ ʺपर तुम तो हिंसक जानवर हो‚ तुम्हारा विश्वास कैसे करेंʺ । बाघ ने कहा‚ हे पथिक ǃ पहले मैं अपने युवाकाल में बहुत दुराचारी था । मैने बहुत सारी गायों‚ ब्राह्मणों और मनुष्यों को मार डाला जिसके पाप से मेरे सभी पुत्र और स्त्रियाँ मर गईं । मेरा वंश समाप्त हो गया । तब किसी महात्मा ने मुझे उपदेश किया कि तुम लोगों को दान दिया करो जिससे तुम्हारे सारे पाप नष्ट हो जाएँगे । तब से मैं नित्य ही लोगों को दान दिया करता हूँ । और अब मेरे दाँत और नाखून भी गिर गये हैं फिर मुझसे कैसा भय ।

इतना कह कर बाघ ने नीतियों और ग्रन्थों के उपदेश सुनाना प्रारम्भ कर दिया । पर्याप्त उपदेश सुनाने के बाद बाघ ने कहा‚ ʺयद्‍यपि मैं हिंसा का मार्ग छोड़ चुका हूँ फिर भी बाघ मनुष्यों को खाता है ये लोकापवाद हटा सकने में समर्थ नहीं हूँ ।ʺ

बाघ की सारी बातें सुनकर पथिक को बाघ के ऊपर विश्वास हो गया । उसने कंगन लेने की स्वीकृति दे दी । बाघ ने उसे नदी के जल में स्नान करके आने को कहा ताकि वह पूरे विधि-विधान से दान दे सके ।

पथिक जैसे ही नदी के जल में नहाने के लिये उतरा वैसे ही किनारे के दलदल में फॅंस गया । वह कीचड़ में धँसने लगा और स्वयं को बचाने के लिये जोर-जोर से सहायता पुकारने लगा ।

पथिक को दलदल में फँसा हुआ देखकर बाघ बोला‚ तुम चिन्ता मत करो । अभी मैं तुमको निकालता हूँ । ऐसा कहकर बाघ धीरे-धीरे पथिक के पास गया और उसे मारकर खा गया ।

हितोपदेश

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