एकदिन एक सियार ने उसे देखा और सोचने लगा कि - अहा ǃ इसका मीठा सुस्वादु मांस मैं किस प्रकार खाऊँ । अच्छा पहले इससे मेल-जोल बढाऊँ और विश्वास उत्पन्न करूँ । ऐसा विचार कर उस मृग के पास जाकर वह सियार बोला -
हे मित्र ǃ कहिए‚ आप कुशल से तो हैं न ?
हिरन ने कहा - भाई तुम कौन हो ॽ
सियार बोला - मैं सियार हूँ‚ मेरा नाम क्षुद्रबुद्धि है । इस वन में मैं मित्रों से रहित होने के कारण मृतक की तरह पड़ा रहता हूँ । इस समय आप ऐसे सज्जन मित्र को पाकर अपने बन्धु-बान्धवों के साथ मानों मैं पुनः जीवलोक में आ गया हूँ । अब मैं सदा आपके साथ ही रहूँगा ।
हिरण न कहा - अच्छा‚ जैसी तुम्हारी इच्छा ।
इसके बाद जब शाम हो गई तब हिरन सियार के साथ अपने निवास स्थान को चला । वहाँ चम्पा के पेड़ पर उस हिरण का पुराना मित्र सुबुद्धि नामक कौवा बैठा हुआ था । उन दोनों को देखकर कौवा बोला - मित्र चित्रांग ǃ तुम्हारे साथ यह दूसरा कौन है ॽ
हिरन बोला - यह क्षुद्रबुद्धि सियार है । हमलोगों से मित्रता करने के लिये आया है ।
कौवा बोला - मित्रǃ बिना जाने‚ अचानक से आये हुए व्यक्ति से मित्रता नहीं करनी चाहिये ।
यह सुनकर सियार बोला - जब आप दोनों पहली बार मिले थे तो किसको किसके बारे में क्या पता था । फिर भी आप दोनों का प्रेम बढता ही जाता है । इसीलिये मेरे ऊपर भी विश्वास करिये । जैसे ये हिरण मेरा मित्र है वैसे ही आप भी मेरे मित्र हैं ।
तब हिरण बोला - इस वाद-प्रतिवाद से क्या लाभ ॽ जैसे हम दोनों प्रेम से रहते हैं वैसे ही अब हम तीनों प्रेम से रहा करेंगे ।
यह सुनकर कौवा शान्त हो गया । रात बीतने पर सभी अपने-अपने काम पर लग गये । धीरे-धीरे अपने व्यवहार से सियार हिरन का विश्वास जीतने लगा ।
एक दिन सियार ने हिरन से एकान्त में कहा - मित्र ǃ इसी वन में एक स्थान पर धान का हरा-भरा खेत है । चलो मैं तुमको दिखाता हूँ । वहाँ तुम खूब जी भर कर धान की फसल खा सकोगे । ऐसा कहकर सियार ने हिरन को धान का खेत दिखाया ।
अब तो हिरन रोज ही धान की फसल खाने जाने लगा । एक दिन उस खेत के मालिक ने हिरन को धान की फसल खाकर जाते हुए देख लिया । उसी रात उसने खेत में जाल लगा दिया । हिरन जब खेत में चरने गया तो वह उसी जाल में फँस गया ।
हिरन को जाल में फँसा देखकर सियार मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ और सोचने लगा कि जब इस हिरन की खाल उतारी जाएगी तो मुझे ढेर सारा माँस और खून से सनी हड्डियाँ खाने को मिलेंगी ।
तभी जाल में फँसे हिरन ने सियार को देखकर सहायता की गुहार लगाई । सियार बोला - हे मित्र ǃ ये जाल तो अंतड़ियों का बना हुआ है और आज मेरा रविवार का व्रत है । अगर तुम बुरा न मानो तो कल सुबह होते ही मैं इस जाल को काट दूँगा ।
ऐसा कहकर सियार वहाँ से चला गया और आगे जाकर छिपकर बैठ गया । वह सुबह की प्रतीक्षा करने लगा ।
जब काफी रात बीत गया और हिरन व सियार दोनों ही नहीं आये तब कौवे को चिन्ता होने लगी । वह हिरन को ढूँढते-ढूँढते खेत के पास जा पहुँचा । वहाँ अपने मित्र को जाल में फँसा हुआ देखकर बहुत दुःखी होते हुए पूँछा - हे मित्र ǃ तुम्हारी यह दशा कैसे हुई और तुम्हारा मित्र सियार कहाँ है ॽ
हिरन लज्जित होते हुए बोला - हे मित्र ǃ मैने तुम्हारी बात न मानकर बहुत भूल की । यह सब उसी सियार के कारण हुआ है । अभी वो यहीं-कहीं आस-पास ही छिपकर सुबह मेरे मरने की प्रतीक्षा कर रहा है ।
सारी बात जानकर कौवा बोला - मित्र ǃ धैर्य रखाे । हम कोई न कोई उपाय कर लेंगे । अभी मैं जैसा कहता हूँ तुम वैसा ही करो । सुबह जब खेत का मालिक आने लगे तो तुम अपना पेट फुलाकर‚ टाँगें कड़ी करके लेट जाना । मैं तुम्हारे ऊपर चोंच मारूँगा पर तुम कोई भी हरकत मत करना ।
हिरन ने उसकी बात मान ली । सुबह जब किसान खेत की ओर आया तो हिरन ने वैसा ही किया जैसा कौवे ने बता रखा था । कौवा भी उसके ऊपर बैठ कर चोंच मारने लगा । यह सब दूर से ही देखकर किसान ने सोचा - चलो अच्छा ही हुआ ये अपने आप मर गया । ऐसा सोचकर किसान हिरन को एक ओर करके निश्चिन्त होकर जाल बटोरने लगा ।
कौवे ने जैसे ही अवसर देखा तुरंत ही आवाज करके हिरन को भाग जाने का संकेत किया । कौवे का संकेत पाकर हिरन तुरंत ही भाग खड़ा हुआ ।
हिरन को भागता देख किसान ने अपनी लाठी फेंक कर मारी; पर दुर्भाग्य से वह लाठी हिरन को न लगकर पास में छिपकर बैठे सियार को लग गई और वह वहीं मर गया ।
इस तरह हिरन अपनी सच्ची मित्रता के कारण बच गया और सियार ने अपनी नीचता का फल पाया ।
हितोपदेश - मित्रलाभ
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