चीत्कारिगर्दभकथा
वाराणसीपुरी में कर्पूरपटन नामक एक धोबी रहता था । एक रात वह अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ प्रेमालाप करके सो रहा था । उसी समय उसके घर में चोरी करने को चोर घुस आये । उस धोबी के घर के आँगन में एक गधा बँधा हुआ था; और वहीं धोबी का एक कुत्ता भी बैठा था ।
चोरों की आहट पा गधे ने कुत्ते से कहा - हे मित्र ǃ अपने स्वामी को चोरों से सावधान करना आपका कर्तव्य है; अतः आप चिल्लाकर मालिक को जगाते क्यूँ नहीं ॽ
कुत्ता बोला - भाई ǃ आप मेरे काम की चिन्ता क्यूँ करते हैं ॽ क्या आपको पता नहीं‚ मैं कितनी रातों से इसके घर की रक्षा करता आ रहा हूॅं‚ जिसके कारण यह सुखी है; और इसे अब मेरी आवश्यकता ही नहीं मालूम देती है । इसीलिये इन दिनों यह मुझे ठीक से भोजन नहीं देता और न ही मेरा ध्यान ही रखता है । क्योंकि बिना दुःख झेले स्वामी लोग नौकरों का ध्यान कम रखते हैं इसलिये आज चोरों को चोरी कर लेने दो ताकि कल से इसे मेरा महत्व समझ में आने लगे ।
कुत्ते की बात सुनकर गधा गुस्से में बोला - रे नीच ǃ जो भृत्य अथवा मित्र काम के समय मांगता है‚ वह नौकर भी नीच होता है और वह मित्र भी अधम और निन्दित होता है ।
याचते कार्यकाले यः स किंभृत्यः‚ स किंसुहृत् ॽ
इस पर कुत्ता बोला - जो केवल काम पड़ने पर ही अपने सेवक को याद करे वह मालिक भी अधम ही होता है ।
भृत्यान् संभाषयेद्यस्तु कार्यकाले‚ स किंप्रभुः ॽ
गधा बोला - अरे दुष्ट ǃ तू बड़ा पापी है‚ जो विपत्ति में भी स्वामी के कार्य की उपेक्षा करता है । जो भी हो‚ जिस भी उपाय से स्वामी जागेंगे‚ वह उपाय मैं करूँगा ।
क्यूँकि - सूर्य का सेवन पीठ से करना चाहिए‚ आग का सेवन सामने से करना चाहिये‚ स्वामी की सेवा सभी प्रकार से करनी चाहिये और परलोक की सेवा छल रहित होकर करना चाहिये ।
पृष्ठतः सेवयेदर्कं‚ जठरेण हुताशनम् ।
स्वामिनं सर्वभावेन‚ परलोकममायया ।।
ऐसा कहकर गधा बड़े जोर से चिल्लाने लगा । उसके चिल्लाने से‚ सुख से सोया हुआ धोबी जग गया । असमय में नींद टूट जाने के कारण क्रोधित होकर वो गधे को पीटने लगा । अधिक पिटाई हो जाने के कारण गधा मरा गया ।
इसी लिये कहा गया है - दूसरों के कार्य व अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये । क्यूँकि‚ भले ही अपने स्वामी के हित की रक्षा के लिये ही‚ जो व्यक्ति दूसरों के अधिकार की चर्चा करता है वह धोबी के उसी गधे की भाँति पीड़ित होता है ।
पराधिकारचर्चां यः कुर्यात्स्वामिहितेच्छया ।
स विषीदति‚ चीत्काराद् गर्दभस्ताडितो यथा ।।
हितोपदेश
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