दक्षिण दिशा में सुवर्णवती नाम की एक नगरी थी । वहाँ पर वर्धमान नाम का एक धनी सेठ रहता था । उसके पास बहुत धन रहने पर भी‚ अपने अन्यान्य बन्धुओं को अधिक धनी देखकर‚ उसको भी अपने धन को बढाने की इच्छा हुई ।
धन बढाने की इच्छा को पूर्ण करने के लिये वर्धमान ने संजीवक और नन्दक नामक दो उत्तम बैलों को अपनी गाड़ी में जोत लिया और नाना प्रकार की व्यापार वाली वस्तुओं को लेकर व्यापार करने चल पड़ा ।
रास्ते में सुदुर्ग नामक एक जंगल में संजीवक बैल का एक पैर टूट गया और वह गिर पड़ा । यह देखकर वर्धमान वणिक निकट के धर्मपुर नामक नगर में जाकर एक नया बैल खरीद लाया और संजीवक को वहीं छोड़कर अपना वाहन ले आगे बढ गया ।
पर कहते हैं‚ यदि कोई समुद्र में कूद गया हो या पर्वत से गिर गया हो अथवा उसे सांप ने काट खाया हो‚ तो भी यदि आयु शेष है तो वह कभी भी नहीं मरेगा‚ क्यूँकि सभी के मर्म की रक्षा आयु (अवशिष्ट जीवनकाल) करती है ।
निमग्नस्य पयोराशौ‚ पर्वतात्पतितस्य च ।
तक्षकेणाऽपि दष्टस्य‚ आयुर्मर्माणि रक्षति ।।
इस प्रकार कुछ दिन बीतने पर संजीवक यथेच्छ आहार-विहार करके हृष्ट पुष्ट हो गया । वन में घूमता हुआ एक दिन वह जोर से चिल्लाने लगा । उसी समय उस वन का राजा पिंगलक नामक सिंह प्यास से व्याकुल हो यमुना जी के किनारे जल पीने गया हुआ था । सिंह ने जब आकाश में मेघ के समान वह गर्जना सुनी तो वह चकित होकर जल पिये बिना ही लौट आया ।
उसके मन्त्री के पुत्र करटक और दमनक नाम के दो सियारों ने उसकी यह दशा देखी और दमनक ने करटक से कहा - हे मित्र ǃ हमारा स्वामी जल पिये बिना ही वापस क्यों लौट आया ॽ जब से लौटा है तभी से आश्चर्यचकित हो चुपचाप सा बैठा है ।
करटक बोला - मित्रǃ मेरी समझ से तो ऐसे डरे हुए स्वामी की सेवा करनी ही अनुचित है । वैसे भी इन दिनों बिना किसी अपराध के राजा ने हम दोनों की उपेक्षा की है ।
दमनक बोला - ऐसा नहीं कहना चाहिये । चाहे जैसा भी हो‚ स्वामी हर हाल में सेव्य होता है ।
करटक बोला - हम लोग तो इस राज्य के प्रधान हैं नहीं‚ इसलिये हमें इन सब विचारों से क्या प्रयोजन ॽ
दमनक ने कहा - मन्त्री लोग थोड़े ही समय में प्रधानता व अप्रधानता स्वयं ही प्राप्त कर लेते हैं । क्यूँकि व्यक्ति बड़ा या छोटा अपने कर्मों से ही होता है ।
इसपर करटक बोला - फिर तुम ही बताओ ǃ हमें क्या करना चाहिये ॽ क्या हमें स्वामी के भय का हेतु जानना चाहिये ॽ
दमनक ने कहा - बुद्धिमान् मनुष्य के लिये कुछ भी अज्ञात नहीं है । इतना कहकर दमनक वहाँ से चला गया और सीधे राजा पिंगलक के पास जा पहुँचा । राजा ने दूर से ही आते दमनक को देखकर आदरपूर्वक उसे भीतर बुलाया । दमनक ने उसे साष्टांग प्रणाम किया और पास ही बैठ गया ।
राजा ने पूछा - बहुत दिनों बाद दिखे हो ǃ कहो‚ क्या हाल-चाल है ॽ
दमनक बोला - यद्यपि महाराज को मेरी सेवा की आवश्यकता नहीं है तथापि समय-समय पर सेवक को स्वामी के पास अवश्य ही जाते रहना चाहिये‚ इसीलिये मैं आज यहाँ आया हूँ ।
राजा पिंगलक बोला - भद्र दमनक ǃ क्या कह रहे हो ॽ तुम मेरे प्रधानमन्त्री के पुत्र होकर भी सम्भवतः किसी दुष्ट के बहकावे में आकर इतने दिनों से मेरे पास नहीं आये । अब तुम्हें जो कहना हो निःशंक होकर कहो ।
दमनक बोला - हे देव ǃ मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप पानी पीने को यमुना नदी के तट पर गये थे किन्तु बिना पानी पिये ही घबराकर वापस क्यूँ लौट आये ॽ
पिंगलक बोला - तुमने ठीक प्रश्न पूछा है । यह रहस्य बताने के लिये अबतक कोई विश्वासपात्र उपलब्ध नहीं था‚ आज मैं ये सारा रहस्य तुमसे कहता हूँ । इस समय इस वन में किसी अपूर्व प्राणी ने अधिकार जमा लिया है‚ इसीलिये मैं यह वन छोड़ देना चाहता हूँ । तुमने भी वह अपूर्व शब्द सुना होगा ǃ शब्द से यह प्रतीत होता है कि वह जीव बहुत ही बली होगा । इसीलिये मैं घबड़ाया हुआ हूँ ।
दमनक बोला - हाँ महाराज ǃ वह अपूर्व शब्द मैंने भी सुना है किन्तु वह मन्त्री अच्च्छा और योग्य नहीं है जो पहले राजा को देश छोड़ने के लिये कहे और बाद में लड़ाई लड़ने के लिये । ऐसे कठिन कार्येां के उपस्थित होने पर ही नौकरों का उपयोग और योग्यता देखी जाती है ।
पिंगलक बोला - भद्र ǃ मुझे तो इस समय बहुत अधिक भय लग रहा है ।
दमनक (मन में) - नहीं तो तुम राज्यसुख छोड़कर जाने की बात ही क्यूँ करते ǃ (प्रकट में सुनाकर जोर से) महाराज ǃ जबतक मैं जीवित हूँ तब तक आप को डरने की कोई आवश्यकता नहीं है । किन्तु करटक आदि को भी प्रसन्न कर लेना चाहिये ताकि समय आने पर अपने पक्ष के सभी लोग उपस्थित रहें‚ क्योंकि आपत्ति के समय योग्य पुरुषों का एकत्र होना दुर्लभ है ।
इसके अनन्तर राजा ने बहुत सारा धन देकर दमनक और करटक का सम्मान किया और वे दोनों भय को दूर करने की प्रतिज्ञा करके चल पड़े ।
जाते-जाते करटक ने दमनक से पूछा - हे मित्र ǃ हमने राजा से उसके भय निवारण के एवज में बहुत सारा पारितोषिक ले लिया है; अतः ये बताओ ǃ क्या इस भय के कारण का हटाना शक्य है या अशक्य ॽ
दमनक हसते हुए बोला - मित्र धीरे बोलो ǃ मैंने भय का कारण समझ लिया है । यह शब्द एक बैल का है और बैल तो हम लोगों का भी भक्ष्य है और शेर का भी; फिर तो कहना ही क्या हैǃ
करटक बोला - यदि इतनी सी ही बात है तो फिर तुमने स्वामी के भय को वहीं क्यूँ नहीं दूर कर दिया ॽ
दमनक ने कहा - यदि हम स्वामी का भय वहीं दूर कर देते तो यह महान् पारितोषिक कैसे मिलता ॽ भृत्यों को चाहिये कि वे अपने स्वामी को सर्वथा निरपेक्ष न करें ।
इसके अनन्तर दमनक और करटक जंगल में संजीवक बैल के पास गये । संजीवक के पास पहुँचने से पहले करटक बड़े आडम्बर के साथ एक वृक्ष के नीचे सेनापति बनकर बैठ गया; और दमनक संजीवक के पास जाकर बोला - अरे बैल ǃ राजा पिंगलक के द्वारा इस वन की रक्षा के लिये जिनको नियुक्त किया गया है‚ वे सेनापति करटक तुमको बुलाते हैं । या तो उनके पास चलो या फिर शीघ्र ही इस जंगल को छोड़कर कहीं और चले जाओ ।
यह सुनकर संजीवक बैल‚ सेनापति बने करटक के पास गया और साष्टांग प्रणाम करके डरते हुए बोला - हे सेनापते ǃ कहिये मैं क्या करूँ‚ मेरे लिये क्या आज्ञा है ॽ
करटक बोला - हे बैल ǃ यदि इस वन में तुम्हारी रहने की इच्छा है तो चलकर राजा के चरणों में प्रणाम करो ।
संजीवक बोला - यदि आप अभयदान दे तो मैं अवश्य चलता हूँ ।
करटक ने कहा - तुम यह मत सोचो कि राजा तुम्हे मार देंगे‚ क्यूँकि बड़े लोग बड़ों के ही ऊपर अपना पराक्रम दिखाते हैं‚ अपने पैरों पर गिरे छुद्रजीवों पर नहीं । अतः तुम निश्चिन्त होकर चलो । ऐसा कहकर करटक‚ दमनक और संजीवक के साथ राजा पिंगलक के पास जा पहुँचा । संजीवक को कुछ दूर बैठाकर वे दोनों पिंगलक के पास गये ।
राजा ने बड़े आदर के साथ दोनों को देखा । उन दोनों ने भी राजा को प्रणाम किया और पास में बैठ गये । तब राजा ने पूछा - क्या उस जीव को देखा ॽ
दमनक बोला - हे राजन् ǃ मैने उसको देखा । और जैसा आपने समझा था वह वैसा ही महान् बली जीव है । वह आपसे मिलना चाहता है । परन्तु वह बहुत बलवान् है‚ इसीलिये आप सावधान होकर बैठिये‚ और तब उससे मिलिये । परन्तु केवल शब्द से ही डरना भी नहीं चाहिये ।
तब उन दोनों ने संजीवक बैल को लाकर राजा से मिलाया और दोनों में मित्रता करा दी । इसके बाद वह संजीवक बैल प्रेम से राजा सिंह के पास ही रहने लगा ।
एक दिन राजा पिंगलक का भाई स्तब्धकर्ण नाम का सिंह उससे मिलने आया । राजा ने उसका खूब आदर सत्कार किया और उसे विश्राम करने को कहकर उसके खाने के लिये शिकार पर जाने लगा । इसपर संजीवक ने पिंगलक से पूछा - राजन् ǃ आपने पहले जो शिकार किये थे और बहुत सारा मांस इकट्ठा किया था‚ वो कहॉं गया ॽ
पिंगलक ने कहा - उसे करटक और दमनक खा गये ।
तब स्तब्धकर्ण ने पूछा - क्या कहते हो ǃ क्या सारा माँस खा गये ॽ
पिंगलक बोला - कुछ खा गये और कुछ फेंक दिया होगा‚ कुछ दूसरों को बाँट भी दिया होगा ।
स्तब्धकर्ण बोला - ऐसे अतिव्ययी लोगों को राजकोष नहीं सौंपना चाहिये । अच्छा हो यदि तुम इस घास खाने वाले संजीवक को ही यह दायित्व सौंप दो ।
पिंगलक ने भाई की बात मानते हुए राजकोष की रक्षा का दायित्व संजीवक बैल को सौंप दिया । कई दिनों तक जब दमनक और करटक को राजा ने शिकार का मांस नहीं दिया तो दोनों ने आपस में विचार किया और सारी बात पता लगाई । उन्हें जब सारी सच्चाई पता लगी तब वे आपस में विचार करने लगे । तब दमनक बोला - इसमें अधिक विचारने की क्या आवश्यकता ॽ मैने ही इन दोनों में मित्रता कराई थी‚ मैं ही इन दोनों में पुनः शत्रुता करा देता हूँ ।
करटक बोला - जाओ ǃ तुम्हारा मार्ग सुखदायी हो । इसके बाद दमनक राजा पिंगलक के पास जाकर प्रणाम करके बोला - हे देव ǃ मैं किसी अति आवश्यक‚ बड़े भयंकर कार्य को समझ कर उससे आप को सावधान करने आया हूँ ।
पिंगलक ने आदर से बैठाते हुए पूछा - कहो ǃ क्या बात है ॽ
दमनक ने कहा - महाराज ǃ यह संजीवक बैल आपमें वैर बुद्धि रखता है । यह आपके दिये हुए अधिकार से उच्छृंखल हो गया है और स्वयं को ही राजा समझने लगा है ।
पिंगलक बोला - मुझे तो ऐसा नहीं लगा । वह तो मेरी हर आज्ञा मानता है । मैं कैसे विश्वास कर लूँ कि वह मुझमें वैरबुद्धि रखता है ।
तब दमनक ने बहुत सारी बातें बनाकर संजीवक के विरुद्ध सिंह के खूब कान भरे । यद्यपि पिंगलक को संजीवक पर बहुत अधिक विश्वास था किन्तु उसने परीक्षा करने की सोची । तब पिंगलक ने दमनक से पूछा - तो कहो क्या किया जाए ॽ क्या संजीवक को राजकोष की रक्षा के दायित्व से मुक्त कर दिया जाए ॽ
दमनक बोला - नहीं महाराज ǃ इससे तो वह और भी सचेष्ट हो जाएगा और उसके मन की सही बात आप कभी नहीं जान पाएँगे ।
पिंगलक ने पूछा - तो फिर कैसे पता किया जाए कि वह मुझसे द्वेष करता है ॽ
दमनक ने कहा - महाराज ǃ जब वो आपको देखकर सींग नीचे करके आगे बढने लगे तब समझ जाइयेगा । शेर को इतना समझाकर दमनक सीधे संजीवक के पास जा पहुँचा और उससे डरते हुए सा स्वरूप बनाकर बोला - मित्र संजीवक ǃ तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ‚ पर यदि कहता हूँ तो राजा का विश्वास तोड़ता हूँ और यदि नहीं कहता हूँ तो मित्र का अनिष्ट होगा । इसीलिये बड़े असमंजस में हूँ कि बताऊँ या नहीं ।
संजीवक ने आग्रह पूर्वक पूछा - मित्र ǃ बताओ तो सही‚ क्या बाता है ॽ
दमनक ने कहा - मित्र ǃ राजा पिंगलक तुमको मारना चाहता है । आज ही मैने अपने कानों से सुना है ।
इसपर संजीवक बोला - लेकिन महाराज तो मुझसे बहुत स्नेह रखते हैं‚ तुमसे अवश्य ही कोई भूल हुई है ।
दमनक बोला - मित्र ǃ महाराज का प्रेम एक दिखावा मात्र है । तुम्हें विश्वास न हो न सही किन्तु तुम सतर्क अवश्य रहना । जब तुम्हें देखकर महाराज अपनी पूँछ चलाने लगें और मुँह फाड़कर दौड़ें तो समझ जाना कि तुम्हें मारने आ रहे हैं ।
ऐसा कहकर दमनक पुनः राजा पिंगलक के पास जाकर बोला - महाराज ǃ वह बैल इधर ही आपको मारने के लिये आ रहा है । आप तैयार होकर बैठिये । ऐसा न हो वह पहले ही आक्रमण कर दे और आप असावधान रहने के कारण उसके शिकार हो जाएँ ।
दमनक की बात सुनकर शेर अपनी पूँछ चलाते हुए मुँह फाड़कर आगे बढ़ा । उधर बैल ने उसे अपनी ओर मुँह फाड़े आता देखा तो वह भी सींग नीचे किये शेर की ओर झपटा । एक दूसरे पर हमले के भ्रम में दोनों ने सच में एक दूसरे पर हमला कर दिया । देखते ही देखते दोनों में भयंकर युद्ध शुरू हो गया और कुछ देर में शेर ने बैल को मार डाला ।
बैल को मारकर शेर बहुत दुःखी हुआ और दमनक व करटक दोनों मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए । दमनक शेर के पास जाकर बोला‚ महाराज ǃ आप अपने निगूढ शत्रु को मारकर प्रसन्न होने की जगह दुःखी हैं । और फिर विविध प्रकार से ढांढस बंधाकर उन दोनों ने शेर का वापस प्रसन्न कर लिया ।
इस तरह अपनी बुद्धि के बल से दमनक और करटक राजा के विश्वासपात्र होकर सुख से जीवन बिताने लगे ।
हितोपदेश
सुहृद्भेद
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