टिट्टिभसमुद्रकथा ।
दक्षिण समुद्र के किनारे टिटिहरी का एक जोड़ा रहता था । टिटिहरी का जब प्रसवकाल समीप आया तब उसने अपने पति से कहा - हे नाथ ǃ अब आपको मेरे प्रसव हेतु कोई अच्छा सा एकान्त स्थान ढूँढना चाहिये ।
टिटिहरा बोला - हे प्रिये ǃ यह स्थान भी तो प्रसव करने योग्य है ।
टिटिहरी बोली - इस स्थान पर तो समुद्र की वेला (ज्वार-भाटा) आती है ।
टिटिहरा बोला - क्या मैं निर्बल हूँ जो समुद्र इस तरह मेरे रहते तुम्हारे अण्डों का अपहरण कर लेगा ॽ
टिटिहरी हँसकर बोली - स्वामी ǃ आपमें और समुद्र में बड़ा अन्तर है ।
टिटिहरा बोला - तुम चिन्ता न करो ǃ समुद्र हमारा कुछ बिगाड़ नहीं पाएगा ।
इस तरह अपने स्वामी के समझाने पर टिटिहरी बड़ी कठिनाई से समुद्र के किनारे ही प्रसव के लिये मान गई; और वहीं अंडे दे दिये ।
समुद्र ने उन दोनों की बात सुनी तो उसने भी टिटिहरे का पराक्रम देखने के लिये उसके अंडे हर लिये । तब शोक से पीड़ित टिटिहरी ने टिटिहरे से कहा - हे नाथ ǃ आप के रहते ही समुद्र ने मेरे सारे अंडे हर लिये ।
टिटिहरा बोला - हे प्यारी ǃ तुम डरो मत । मैं इस समुद्र को सबक अवश्य सिखाऊँगा ।
ऐसा कहकर टिटिहरे ने सभी पक्षियों की सभी बुलाई और अपनी आपबीती कह सुनाई । सभी ने एकमत हो करके पक्षियों के स्वामी गरुण जी के पास जाने का निश्चय किया ।
सबके साथ भगवान् गरुड़ के पास जाकर टिटिहरा बोला - हे देव ǃ मुझ निरपराध के सारे अण्डे मेरे ही घर से समुद्र ने हर लिये । कृपया मेरे कष्ट का निवारण करें ।
उसके दुःख से दुःखी हो भगवान् गरुड़ ने उसकी सारी व्यथा भगवान् नारायण से कह दी । भगवान् नारायण ने समुद्र को टिटिहरी के सारे अण्डे सुरक्षित वापस करने का आदेश दिया । तदनन्तर भगवान् की आज्ञा शिरोधार्य कर समुद्र ने टिटिहरी के सारे अण्डे सुरक्षित रूप में उसे वापस किये और अपने अपराध की क्षमा माँगी ।
इसीलिये कहा गया है - किसी के सामर्थ्य का निर्णय बिना उसके सहायक के बारे में जाने ही नहीं कर लेना चाहिये ।
अङ्गाङ्गिभावमज्ञात्वा कथं सामर्थ्यनिर्णयः ।।
हितोपदेश
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