गंगा जी के किनारे पर गृध्रकूट नाम का एक पर्व है । उस पर्वत पर एक बड़ा पाकड़ का पेड़ था । उसे खाेखले कोटर में जरद्गव नाम का एक बूढा गीध रहता था । बुढापे के कारण उसके नाखून और दाँत सब कमजोर हो गये थे । उसको इस प्रकार असहाय देखकर उस वृक्ष पर रहने वाले पक्षीगण दया करके अपने-अपने भोजन में से कुछ निकालकर उसे दे दिया करते थे‚ जिससे उसकी प्राणरक्षा होती थी; और बदले में वह गीध भी उन पक्षियों के बच्चों की रखवाली किया करता था ।
एक दिन दीर्घकर्ण नाम का एक बिलव पक्षियों के बच्चों को खाने के लिये वहाँ आया । उसको आते देख कर पक्षियों के बच्चों ने जोर से शोर मचाना शुरू कर दिया । उनका शोर सुनकर जरद्गव गीध ने डपट कर पूछा - यह कौन आ रहा है ॽ
उस गीध को देख कर डरता हुआ बिल्ला मन ही मन सोचने लगा‚ आज तो मैं बिना मौत मारा जाऊँगा । फिर मन में सोचा कि जबतक विपत्ति आ न जाए तब तक उससे डरना नहीं चाहिये और विपत्ति आ जाने पर निर्भय होकर उसका प्रतिकार करना चाहिये । इस समय मैं गीध के पंजे में हूँ‚ उससे बचकर भाग नहीं सकता हूँ इसलिये अब इस गीध के पास जाकर इसे अपने अच्छे होने का विश्वास दिलाता हूँ । बाकी आगे जो भी होगा देखा जाएगा ।
ऐसा विचार कर वह बिल्ला उस गीध के पास जाकर बोला - हे आर्य ǃ मैं आपको प्रणाम करता हूँ ।
गीध बोला - तुम कौन हो ॽ
वह बोला - मैं बिलाव हूँ ।
गीध ने कहा - यहाँ से भाग जाओ नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूँगा ।
बिलाव ने कहा - पहले मेरी बात तो सुन लीजिये फिर यदि मैं मारने योग्य होऊँ तो अवश्य ही मुझे मार दीजियेगा ।
गिद्ध ने कहा - ठीक है; अपनी बात कहो । यहाँ क्यूँ आये हो ।
बिल्ला बोला - मैं यहाँ गंगा जी के किनारे ही प्रतिदिन स्नान कर‚ फलाहारी रहकर‚ ब्रह्मचर्य पूर्वक चान्द्रायण का व्रत करता हूँ । आप बड़े ज्ञानी हैं ऐसा प्रतिदिन पक्षिगण कहा करते हैं । इसलिये आपको विद्या और आयु में वृद्ध जानकर आपसे कुछ धर्मशास्त्र का उपदेश सुनने यहाँ आया था । परन्तु आप तो मुझ अतिथि को ही मारने के लिये तैयार हैं ।
गिद्ध ने कहा - बिल्ली को मांस खाने की बड़ी रुचि होती है‚ और यहाँ पक्षियों के बच्चे रहते हैं इसलिये मैने ऐसा कहा था । तुम इससे बुरा मत मानना ।
यह सुनकर वह बिल्ला भूमि को छूकर कान पकडते हुए बोला कि मैं तो धर्मशास्त्रों का उपदेश सुनकर विरक्त होकर इस कठिन चान्द्रायण का व्रत कर रहा हूँ । यद्यपि कई विषयों में धर्मशास्त्रों में मतभेद है किन्तु अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है यह बात तो सभी धर्मशास्त्रों में स्वीकृत है ।
इतना करकर बिल्ले ने गीध को धर्मशास्त्रों और नीतियों की बहुत सी बातें बताईं । खूब सारी अच्छी चर्चाओं से उसने गीध के मन में विश्वास जमा लिया और गीध के साथ ही उसी पेड़ के एक और कोटर में निवास करने लगा ।
कुछ दिन बीत जाने पर वह प्रतिदिन पक्षियों के बच्चों को पकड़-पकड़ कर अपने कोटर में लाकर खाने लगा । जिन पक्षियों के बच्चों को उसने खा लिया था वे पक्षी शोकार्त होकर रोते हुए अपने बच्चों को इधर-उधर खोजने लगे । इस बात को जानकर बिल्ला अपने कोटर से निकलकर भाग गया ।
अपने बच्चों को खोजते-खोजते पक्षिगण उस पेड़ के कोटर में जा पहुँचे जहाँ बिलाव रहता था । वहाँ उन्हें अपने बच्चों की हड्डियाँ मिलीं । तब सभी पक्षियों को लगा कि इसी जरद्गव गीध ने ही हमारे बच्चों को खाया है । ऐसा निश्चय हो जाने पर सभी पक्षियों ने एकसाथ मिलकर अपने चोंचों से काट-काटकर उस बेचारे गीध को मार डाला ।
इसीलिये कहते हैं कि बिना किसी के बारे में भली-भाँति जाने किसी को अपने स्थान पर नहीं रहने देना चाहिये ।
हितोपदेश
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