Ticker

6/recent/ticker-posts

हंस‚ कौवा और श्रान्त पथिक की कथा ।

हंसकाककथा ।


उज्जयिनी के जंगल में लम्बे‚ निर्जन‚ बीहड़ मार्ग के निकट एक पिप्पल (पाकड़) का पेड़ था । उस पर हंस और कौव ये दो पक्षी रहा करते थे ।

कुछ समय के बाद गरमी के मौसम में एक थका हुआ पथिक उस वृक्ष के नीचे धनुष-बाण सिरहाने रखकर सो गया । थोड़ी देर में उसके मुँह पर से वृक्ष की छाया हट गई । तब सूरज की धूप से उसके मुँह को व्याकुल देखकर सज्जन स्वभाव वाले हंस ने कृपा करके अपने पंख फैलाकर उसके मुँह पर छाया कर दी ।

छाया पाकर सुखी हो सोये हुए पथिक का मुँह खुल गया । उसी समय दूसरे के सुख को न सह सकने वाला वह कौवा अपने स्वभाव की दुष्टता के कारण उस पथिक के मुँह में मल त्याग करके उड़ गया ।

तब वह मुसफिर उठ कर ऊपर की ओर देखने लगा कि उसके मुँह में किस जीव ने मल त्याग किया । ऊपर पेड़ पर उसे पंख फैलाये बैठा हुआ हंस दिखाई दिया ।

हंस को ऊपर बैठा देख‚ 'निश्चय ही इसी ने मेरे मुख पर विष्ठा की'‚ ऐसा विचार कर‚ उस पथिक ने हंस पर अपना बाण चला दिया और उसे मार डाला ।

सत्य ही कहा है - दुष्ट के साथ कभी भी नहीं रहना चाहिये और न ही कहीं जाना चाहिये ।

न स्थातव्यं न गन्तव्यं दुर्जनेन समं क्वचित् ।
काकसंगाद्धतो हंसस्तिष्ठन् गच्छंश्च वर्तकः ।।

हितोपदेश


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ