रथकार-तद्वधूजारकथा ।
यौवनश्री नगर (झाँसी) में मन्दमति नामक एक रथकार रहता था । वह अपनी पत्नी के किसी अन्य व्यक्ति से प्रणय प्रसंग के बारे में जानता था । यद्यपि वह अपनी पत्नी के दुराचरण के विषय में निश्चित था किन्तु कभी भी उसके यार के साथ एक ही स्थान पर अपनी आँख से नहीं देखा था‚ इसी कारण उसे दण्ड नहीं दे सकता था ।
एक दिन रथकार अपनी पत्नी से 'मैं दूसरे गाँव को जा रहा हूँ‚ आज नहीं आ सकूँगा' कहकर घर से निकल गया । घर के बाहर ही किसी गुप्त स्थान पर छिपकर बैठ गया । पत्नी को निश्चिन्त देख मौका पाकर वापस अपने घर में घुसकर पलंग के नीचे लेटकर प्रतीक्षा करने लगा ।
मेरा पति दूसरे गाँव को चला गया है‚ और अब आज नहीं आयेगा‚ ऐसा विश्वास हो जाने पर रथकार की स्त्री ने अपने यार को बुला लिया और दोनों पलंग पर क्रीडा करने लगे ।
इसी प्रसंग में किसी तरह स्त्री का कोई अंग पलंग के नीचे छिपकर लेटे पति के किसी अंग से छू गया । 'यह मायावी मेरा स्वामी ही है' ऐसा जान कर रथकार की पत्नी बहुत घबरा गई । उसका मन क्रीडा की अपेक्षा इस संकट से कैसे बचा जाए‚ इसमें लग गया ।
उसके यार ने पूछा - तू आज मेरे साथ अच्छी तरह से रमण नहीं करती है । तू कुछ घबराई सी भी लग रही है । सब ठीक तो है न ॽ
स्त्री अवसर पाकर बहाने से बोली - तू नहीं जानता कि मेरा प्राणेश्वर आज दूसरे गाँव गया हुआ है । उसके बिना सारा गाँव भी मुझे सूना सा लगता है । वह कैसा होगा‚ क्या खाता होगा‚ कैसे रहता होगा‚ इसी बात की चिन्ता मुझे खाये जा रही है ।
यार बोला - क्या उस रथकार से तू इतना अधिक प्रेम करती है ॽ
स्त्री बोली - रे मूर्ख ǃ यह तू क्या कहता है ǃ पति ही पत्नी का आभूषण होता है । वही मेरे स्वर्ग का द्वार है । पति यदि पापी भी हो तो भी उसको प्रेम करने वाली स्त्रियाँ ही स्वर्ग की अधिकारी होती हैं । और तू तो केवल यार है‚ और पापबुद्धि भी है । मैं अपने मन की चंचलता के कारण ही कभी-कभार फूल‚ पान आदि की भाँति तेरा उपयोग कर लेती हूँ; पर वो तो मेरा स्वामी है । वह चाहे तो मुझे बेच सकता है‚ देवता या ब्राह्मण को दे सकता है । अधिक क्या कहें‚ उसके जीने से ही मैं जीवित हूँ और उसके मरने पर मैं उसी के साथ सती हो जाऊँगी‚ यही मेरी प्रतिज्ञा है ।
पलंग के नीचे छिपा हुआ रथकार अपनी पत्नी की ये सारी बातें सुनकर मन ही मन प्रसन्न होकर सोचने लगा - अहो ǃ मैं धन्य हूँ जिसकी ऐसी पतिव्रता‚ प्रिय वचन बोलने वाली और अपने स्वामी से ही स्नेह करने वाली पत्नी है ।
ऐसा मन ही मन निश्चय करके वह रथकार अपनी पत्नी और उसके यार सहित उस पलंग को अपने सिर पर उठाकर बड़े आनन्द से नाचने लगा ।
इसीलिये कहा है - प्रत्यक्ष दोष करने पर भी मूर्ख मीठी बातों से बहकावे में आ जाता है ।
प्रत्यक्षेऽपि कृते दोषे‚ मूर्खः सान्त्वेन तुष्यति ।
हितोपदेश
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