नीलवर्णशृगालकथा ।
एक जंगल में एक सियार रहता था । एक बार वह स्वेच्छा से नगर भ्रमण करते हुए किसी रजक के नील से भरे कुंड में गिर गया । बहुत प्रयत्न करने पर भी वह उसमें से निकल नहीं सका । तभी उसे धोबी के आने की आहट सुनाई पड़ी । उसने अपने आप को मरा दिखाने के लिये पेट फुलाकर साँस रोक ली और पानी के ऊपर तैरने लगा ।
रजक (धोबी) ने अपने नील के बर्तन में एक सियार को मरा हुआ देखा । उसने सियार को निकालकर कुछ दूर एक खेत में फेंक दिया । मौका पाकर सियार वहाँ से वापस जंगल भाग गया ।
जंगल में जाकर सियार ने तालाब के पानी में अपना नीला रंग देखा और सोचा - यदि मेरा इतना सुन्दर रंग हो गया है तो क्यूँ न मैं इस रंग का लाभ उठाऊँ । ऐसा सोचकर वह जंगल में सियारों के झुण्ड में गया और सभी सियारों से कहा - मुझे भगवती वनदेवी ने सभी औषधियों के रस से अभिषिक्त करके इस जंगल का राजा बना दिया है । इसीलिये आज से इस जंगल के सभी जीव मेरे आधिपत्य में रहेंगे । तुम लोग पूरे जंगल में ये बात फैला दो ।
सियारों ने अपनी ही तरह की आकृति वाले‚ किन्तु वर्ण के जीव को देखकर उसकी बात सच मान ली और उसकी आज्ञा धारण करके पूरे जंगल में वनदेवी द्वारा उसके राज्याभिषेक की सूचना फैला दी ।
सियारों के फैलाये सन्देश को सुनकर जंगल के सभी जीव उस विचित्र वर्ण के राजा को देखने आने लगे । उसके सामने सभी शेरों‚ चीतों‚ हाथियों‚ बाघों आदि जीवों ने भी सिर झुकाकर उसका राजा होना स्वीकार कर लिया । नीला सियार अब सच में जंगल का राजा हो चुका था । उसके दिन मजे से कटने लगे ।
एक समय नीले सियार ने अपनी जाति के सियारों को राजसभा में देखकर स्वयं को असहज पाया और लज्जा के कारण उसने सभी सियारों को जंगल से निकल जाने का आदेश सुनाया । सभी सियार उसका आदेश सुनकर आश्चर्यचकित और दुःखी थे । उन्हें अपने निकाले जाने का कारण समझ नहीं आया ।
सभी सियारों को दुःखी देखकर एक बूढ़े सियार ने प्रतिज्ञा की - चाहे कुछ भी हो जाए‚ किन्तु इस धूर्त की सत्यता को सभी जानवरों के सामने लेकर आऊँगा और अपने बन्धुओं के अपमान का बदला लूँगा ।
एक समय सायंकाल में जब सभी शेर‚ चीते आदि हिंसक जीव सियार की राजसभा में किसी आयोजन में सम्मिलित थे‚ उसी समय बूढे सियार ने सभी सियारों को राजसभा के समीप चलकर जोर से हुवाँने की आवाज करने को कहा । सभी सियारों ने मिलकर वैसी ही आवाज करना शुरू किया ।
उन सभी सियारों के एक साथ चिल्लाने की आवाज नीले सियार के कानों में पड़ी । अचानक से हुई इस आवाज से वह नीला सियार अपने राजा होने के विषय में भूल गया और अपनी जाति के स्वभाव के कारण वहीं राजसभा में ही मुँह ऊपर उठाकर चिल्लाना शुरू कर दिया ।
क्यूँकि जिसका जो स्वभाव है वह कठिनता से भी बदला नहीं जा सकता है । यदि कुत्ता कभी राजा भी बना दिया जाए तो भी क्या वह जूता (सूखा चमड़ा) चबाना छोड़ देता है ॽ
यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः ।
श्वा यदि क्रियते राजा‚ तत्किं नाश्नात्युपानहम् ।।
तब सिंह‚ व्याघ्र आदि हिंसक जीवों ने 'यह एक साधारण सियार है' ऐसा पहचान लिया और उसी समय उसको मार डाला ।
इसी लिये कहते हैं - अपने पक्ष को छोड़कर जो दूसरे पक्ष के लोगों में अनुराग करता है‚ वह उस सियार की ही तरह मारा जाता है ।
आत्मपक्षं परित्यज्य‚ परपक्षेषु यो रतः ।
स परैर्हन्यते मूढो‚ नीलवर्णशृगालवत् ।।
हितोपदेश
0 टिप्पणियाँ