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नाधर्मश्चरितो लोके....

नाधर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव । 

शनैरावर्तमानस्तु कर्तुः मूलानि कृन्तति ।। 

॥ मनुस्मृति/०४/१७२॥



जिस प्रकार धरती में बोया गया बीज तुरंत फल नहीं देता, उसी प्रकार इस लोक में किया गया अधर्म तुरंत फल नहीं देता। वह धीरे-धीरे पनपता है और धीरे-धीरे ही उस अधर्म करने वाले की जड़ों को काट देता है।" 

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