निधिलुब्धनापितकथा ।
अयोध्या नगरी में चूड़ामणि नामक एक क्षत्रिय रहता था । उसने धन की इच्छा से भगवान् चन्द्रमौलि महादेव की बहुत समय तक आराधना की । जब वह पापरहित होकर शुद्ध हो गया तब एक दिन भगवान् की आज्ञा से स्वप्न में यक्षों के स्वामी कुबेर ने चूड़ामणि को दर्शन दिया ।
कुबेर ने कहा : तू अपने घर पर जाकर क्षौरकर्म (दाढ़ी‚ बाल आदि कटाना) कराकर हाथ में लकड़ी का दण्ड लेकर कहीं छिपकर बैठ जाना ।
तुम्हारे आंगन में एक भिक्षुक आयेगा । तुम उसके ऊपर दण्डे से प्रहार करना । वो तुरंत ही सोने की मुहरों से भरा हुआ सोने के कलश में बदल जाएगा ।
यह स्वप्न देखकर चूड़ामणि ने तपोस्थली त्यागकर घर को प्रस्थान किया । घर पहुँचकर उसने अपने नाई को बुलाकर क्षौरकर्म कराया और स्नानादि से निवृत्त होकर डण्डा लेकर छिपकर बैठ गया ।
कुछ ही देर में उसके आँगन में एक भिक्षुक आया । चूड़ामणि ने भिक्षुक पर दण्ड से प्रहार किया और भिक्षुक तुरन्त ही धन से भरे सोने के कलश में बदल गया ।
यह सारा उपक्रम नाई देख रहा था । उसने सोचा‚ ये तो धन कमाने का सबसे सरल और उत्तम तरीका है । क्यूँ न मैं भी इसी तरीके से धनी और सुखी हो जाऊँ ।
नाई भी तत्काल ही अपने घर गया और अपना क्षौरकर्म करके‚ स्नान इत्यादि से निवृत्त हो‚ हाथ मे दण्ड लेकर छिपकर बैठ रहा । दुर्भाग्य से उस दिन उसके घर कोई भिक्षुक नहीं आया । नाई ने अब अपना नित्य का ही यही क्रम बना लिया । वह क्षौर आदि कर्म से निवृत्त हो प्रतिदिन दण्ड लेकर भिक्षुक के आने की प्रतीक्षा करने लगा ।
एक दिन दोपहर के समय‚ जब नाई दण्ड लेकर‚ छिपकर बैठा प्रतीक्षा कर रहा था‚ उसके आँगन में एक भिक्षुक भिक्षा माँगने के लिये आ पहुँचा । नाई ने आव देखा न ताव‚ तुरंत ही दण्डे से भिक्षुक के सिर पर जोरदार प्रहार कर दिया ।
दण्डे के जोरदार प्रहार से भिक्षुक वहीं धराशायी होकर मर गया । भिक्षुक के मर जाने पर नाई को राजपुरुष उठा ले गये और भिक्षुक की हत्या के अपराध में राजा ने उसे मृत्युदण्ड दिया ।
इसीलिये कहा है : जो वस्तु किसी ने तपस्या‚ भाग्य और पुण्य से पाई है‚ वही वस्तु मुझे भी सहज ही मिल जाएगी‚ ऐसा कदापि नहीं सोचना चाहिये । दूसरे की देखा-देखी निधि चाहने वाला व्यक्ति लोभी नाई की भाँति भिक्षुक को मारकर स्वयं भी मारा जाता है ।
पुण्याल्लब्धं यदेकेन तन्ममापि भविष्यति ।
हत्वा भिक्षुं यतो मोहान्निध्यर्थी नापितो हतः ।।
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