अनुमतिं विहाय आमन्त्रणादि अर्थेषु, विधिसामर्थ्ययो: चार्थे विधिलिड्.स्य प्रयोग: भवति । यथा -
विधौ -
(1) ब्रह्मचारी मधुमांसं च वर्जयेत् ।
(ब्रह्मचारियों को मधु और मांस का सेवन नहीं करना चाहिये) ।
(2) प्रत्यक् शिरा न स्वप्यात् ।
(पश्चिम की ओर सिर करके न सोवें) ।
(3) नान्यस्यापराधेनान्यस्य दण्डमाचरेत् ।
(दूसरे के अपराध के लिये दूसरे को दण्ड न दें) ।
इति
विधौ -
(1) ब्रह्मचारी मधुमांसं च वर्जयेत् ।
(ब्रह्मचारियों को मधु और मांस का सेवन नहीं करना चाहिये) ।
(2) प्रत्यक् शिरा न स्वप्यात् ।
(पश्चिम की ओर सिर करके न सोवें) ।
(3) नान्यस्यापराधेनान्यस्य दण्डमाचरेत् ।
(दूसरे के अपराध के लिये दूसरे को दण्ड न दें) ।
इति
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