कृत् - प्रत्ययान्त शब्दानां योगे तेषां कर्तरि, कर्मणि च षष्ठीविभक्ति: भवति ।
उदाहरणम् -
कृष्णस्य कृति: - कृष्ण का कार्य ।
जगत: कर्ता कृष्ण: - जगत के कर्ता श्री कृष्ण (कृष्ण ने संसार को बनाया) ।
वार्तिकम् - गुणकर्मणि वेष्यते ।।
कृत् - प्रत्ययान्त द्विकर्मक धातूनां योगे गौणकर्मणि षष्ठी विभक्ति: विकल्पेन भवति ।
उदाहरणम् -
नेता श्वस्य स्रुघ्नस्य स्रुघ्नं वा - घोडे को स्रुघ्न देश में ले जाने वाला ।
टिप्पणम् -
नी धातु: द्विकर्मकं तर्हि नेता इत्यस्य मुख्यकर्मणि (अश्व) नित्य षष्ठी, गौण कर्मणि (स्रुघ्न) विकल्पेन षष्ठी । पक्षे तु द्वितीया ।
हिन्दी -
सूत्र - कृत् - प्रत्ययान्त शब्दों के योग में उनके कर्ता और कर्म में षष्ठी विभक्ति होती है ।
वार्तिक - कृत् - प्रत्ययान्त द्विकर्मक धातुओं के योग में गौण कर्म में विकल्प से षष्ठी विभक्ति होती है । उक्त उदाहरण में नी धातु द्विकर्मक है अत: नेता शब्द के मुख्य कर्म अश्व में नित्य षष्ठी और गौण कर्म स्रुघ्न में विकल्प से षष्ठी । पक्ष में द्वितीया विभक्ति हुई।
इति
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