कृत्-प्रत्ययान्तस्य योगे यत्र कर्ता-कर्मश्च उभयोरपि षष्ठी प्राप्यते तत्र केवलं कर्मणि एव षष्ठी भवति, कर्तरि न ।
उदाहरणम् -
आश्चर्यो गवां दोहो गोपेन - अगोप के द्वारा गायों का दुहा जाना आश्चर्य की बात है ।
टिप्पणम् - अत्र 'दोह:' कृदन्तस्य योगे कर्ता 'अगोप' इत्यस्मिन् कर्म 'गो' च द्वयोरपि षष्ठी प्राप्यमान: आसीत् किन्तु अनेन सूत्रेण कर्तु: षष्ठी निराकृता केवलं कर्मणि षष्ठी योजिता इति ।
हिन्दी -
कृत् प्रत्ययान्त के योग में जहाँ कर्ता और कर्म दोनों में षष्ठी प्राप्त होती है, वहाँ पर केवल कर्म में ही षष्ठी हो, कर्ता में नहीं ।
टिप्पणी - उक्त उदाहरण में दोह: कृदन्त के योग में कर्ता अगोप में षष्ठी प्राप्त हो रही थी तथा कर्म गो में भी षष्ठी प्राप्त थी अत: उक्त सूत्र से केवल कर्म में षष्ठी हुई और कर्ता में षष्ठी का निराकरण हो गया ।
इति
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