कृञ: प्रतियत्ने ।। २/३/५३
कृ धातोः कर्मणि सम्बन्धमात्रस्य विवक्षायां गुणाधान-अर्थे षष्ठी विभक्तिः भवति, प्रतियत्नः इत्युक्ते गुणाधानम् उत नवीनगुणानामस्थापनम् ।
हिन्दी - कृ धातु के कर्म में सम्बन्धमात्र की विवक्षा में गुणाधान के अर्थ में षष्ठी विभक्ति होती है । प्रतियत्न का अर्थ गुणाधान अथवा गुण की स्थापना करना है ।।
इति
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