(अध्ािकरण कारकम्)
स्व (वस्तु), स्वामी (अधिकारी, मालिक) च अर्थप्रकटने 'अधि' इत्यस्य कर्मप्रवचनीया संज्ञा भवति ।
हिन्दी -
स्व और स्वामी के अर्थ को प्रकट करने में 'अधि' की कर्मप्रवचनीय संज्ञा होती है ।
सूत्रम् - यस्मादधिकं यस्य चेश्वरवचनं तत्र सप्तमी ।। 2/3/9 ।।
'यस्मात् अधिकं अस्ति', 'यस्य स्वामित्वं उच्यते' एतयो: अर्थयो: कर्मप्रवचनीय योगे सप्तमी विभक्ति: भवति ।
उदाहरणम् -
उप परार्धे हरेर्गुणा: - हरि के गुण परार्ध से भी अधिक हैं ।
अधि भुवि राम: - राम पृथ्वी के स्वामी हैं ।
अधि रामे भू: - पृथ्वी राम के स्वामित्व में है ।
हिन्दी -
'जिससे अधिक है' तथा 'जिसका स्वामित्व कहा जाता है' इन दोनों अर्थों में कर्मप्रवचनीय के योग में सप्तमी होती है ।
परार्ध - परार्ध सबसे बडी संख्या है । इससे बढकर कोई संख्या नहीं होती ।
इति
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_0oQr9vB5gIfMGP9B52tvn37ObAgiTIlv3tp3pHMk4B9jgGeAzTIs1v_EqvtiXn1De__SxAd9gb0g3_27mUz0yBcIo3h-8M5s0o09NK9qtI0vm_FCxgaaTmiTWUJZbRXrOqsY9-XI1Mo/s1600/sanskritjagat.png)
0 टिप्पणियाँ