(अधिकरण कारकम्)
नक्षत्रवाचकशब्दात् अणप्रत्ययस्य लोप: सन् यदा प्रत्ययस्यार्थ: तद्वदेवस्थीयते चेत् तेन नक्षत्रवाचकशब्देन अधिकरणे तृतीया सप्तमी च विभक्ती भवत: ।
उदाहरणम् -
मूलेनावाहयेद् देवीं श्रवणेन विसर्जयेत् । मूले श्रवणे इति वा ।
( मूल नक्षत्र से युक्त काल में देवी का आवाहन करे और श्रवण नक्षत्र से युक्त काल में देवी का विसर्जन करें । )
हिन्दी -
नक्षत्रवाचक शब्द से अण् प्रत्यय का लोप होने पर जब प्रत्यय का अर्थ विद्यमान रहता है तब उस से अधिकरण में तृतीया तथा सप्तमी विभक्ति होती है ।
इति
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