अबोधोपहाताश्चान्ये जीर्णमंगेसुभाषितम् ।।2।।
व्याख्या - ज्ञातार: द्वेषपूर्णा: सन्ति, प्रभावशालिन: दर्पचूर्णा: सन्ति एतयो: अतिरिक्तं ये के पि अवशिष्टा: सन्ति ते तु अज्ञानान्धकारे निमज्जिता: सन्ति अत: सम्प्रति सुभाषितं पूर्णरूपेण जीर्णत्वं प्राप्नोति़ ।
हिन्दी - जानकार (विद्वान) द्वेषयुक्त हो चुके हैं, प्रभावशाली लोग घमण्डी हो चुके हैं तथा शेष अन्य अज्ञानी हैं अत: अब सुभाषित का अंग-प्रत्यंग जीर्ण हो चला है ।
छन्द: - अनुष्टुप
हिन्दी छन्दानुवाद -
जानकार ईर्ष्यालु हैं दम्भी सबल महान ।
शेष ज्ञान से हीन अब जीर्ण सुभाषित जान ।।
इति
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