स्‍वायत्‍तमेकान्‍तगुणं विधात्रा .... नीतिशतकम् ।।


स्‍वायत्‍तमेकान्‍तगुणं विधात्रा 
विनिर्मितं छादनमज्ञताया: ।
विशेषत: सर्वविदां समाजे 
विभूषणं मौनमपण्डितानाम् ।। 7
 
व्‍याख्‍या -
अज्ञताया: छादनाय  स्‍वेच्‍छया एकान्‍तं (मौनत्‍वं) विधात्रा निर्मितं गुणविशिष्‍टमेवास्ति । विशेषरूपेण विदुषां समाजे मौनं मूर्खाणाम् आभूषणमिव अस्ति । इत्‍युक्‍ते सर्वविदां समाजे मूर्ख: केवलं मौनेन एव आत्‍मगौरवं रक्षितुं शक्‍नोति अन्‍यविधया तु कदापि नैवेति ।

हिन्‍दी -
अज्ञान के आवरण स्‍वरूप विधाता ने स्‍वेच्‍छा से मौन रहने का एक विशेष गुण बनाया है । विशेषत: विद्वानों की सभा में मूर्खों के लिये मौन आभूषण के समान है अर्थात् विद्वानों की सभा में मौन ही मूर्खों का आभूषण है ।

छन्‍द - उपजाति छन्‍द: ।
छन्‍दलक्षणम् - इत्‍थं किलान्‍यास्‍वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम ।

हिन्‍दी छन्‍दानुवाद - 
मौन रूपी चादर निर्माण किया विधि ने मूर्खों के हित ।
अज्ञता को ढंक लेती जो मुखर न होने दे किंचित् ।
कभी जो बैठें विदुष समाज, प्रकट न होने दे अज्ञान ।
अहो मूर्खों के हेतु सदैव मौन भी आभूषण ही जान ।।

इति

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