छेत्तुं वज्रमणिं शिरीषकुसुमप्रान्तेन सन्नह्यति ।
माधुर्यं मधुबिन्दुना रचयितुं क्षाराम्बुधेरीहते ।
नेतुं वांछति य: खलान्पथि सतां सूक्तै: सुधास्यन्दिभि: ।।
व्याख्या -
य: जन: सुभाषितसूक्तै: कंचित् दुर्जनं सन्मार्गे आनेतुमिच्छति मन्ये स: कमलपुष्पस्य कोमलनलिकया मत्तगजस्य बन्धनं कर्तुमिच्छति, शिरीषपुष्पस्य प्रान्तभागेन हीरकं (मणिं वा) कर्तितुं चेष्टते, एकेन मधुबिन्दुना एव सम्पूर्णं महासागरजलं मधुरं कर्तुं व्यवस्यति । इति
हिन्दी -
जो व्यक्ति सुन्दर सुभाषित सूक्तियों से किसी दुष्ट व्यक्ति का मार्ग परिवर्तन करना चाहता है मानो वह मदमत्त हाथी की गति को कोमल कमल नाल से बाधित करना चाहता है, शिरीष के कोमल पुष्प के किनारे से वज्र की भांति कठोर हीरे को काटना चाहता है, तथा मधु की एक ही बूंद से मानो पूरे महासागर के खारे जल को मीठा बना देना चाहता है ।
छन्द: - शार्दूलविक्रीडित छन्द
छन्दलक्षणम् - सूर्याश्वैर्यदि म: सजौ सततगा: शार्दूलविक्रीडितम् ।।
हिन्दी छन्दानुवाद -
चाहता प्रमत्त महागज की गति कमलनाल से बांट सके ।
लेकर शिरीष का पुष्प धार से उसकी मणि को काट सके ।
मधु की बस एक बूंद लेकर ही खारा जलधि मधुर कर दे ।
जो चाह रहा है सूक्ति सुभाषित से खल पंथ सु्घर कर दे ।।
इति
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