1- बहुषु बहुवचनम् ।।01/04/21।।
2- चुटू ।।01/03/07।।
3- विभक्तिश्च ।।01/04/104।।
4- न विभक्तौ तुस्मा: ।। ।।01/03/04।।
व्याख्या -
1-- बहुत्वस्य विवक्षायां बहुवचनस्य प्रयोग: क्रियते । इत्युक्ते द्वाभ्याम् अधिकं बोधितुं बहुवचनस्य प्रयोग: क्रियते । इत्युक्ते यत्र द्वाभ्यां वस्तुभ्याम् अधिकं ज्ञापनीयं भवति चेत् तत्र बहुवचनं प्रयुज्ज्यते । अवधेयमस्ति यत् एकस्य कृते एकवचनप्रयोग: । द्वयो: कृते द्विवचनप्रयोग: अथ च बहूनां जनानां कृते बहुवचनप्रयोग: । अस्मिन् बहुजना: द्वाभ्यामधिका: भवेयु: । त्रयं भवतु वा त्रिशतं वा त्रिसहस्रं वा इतोपि अधिकम् । किन्तु द्वाभ्यां तु अधिकमेव भवेत् जनानां वस्तो: वा च संख्या ।
2-- प्रत्ययादौ चवर्गस्य, टवर्गस्य च इत्संज्ञा भवति तदनुसारं लोपश्च भवति ।
3-- सुप् (सु, औ, जस् आदि), तिड्. (तिप्, तस्, झि आदि) इत्ययो: विभक्ति संज्ञापि भवति ।
4-- विभक्ते: तवर्गस्य, 'स्'कारस्य, 'म्'कारस्य च इत्संज्ञा न भवति ।
हिन्दी -
1-- बहुत्व की विवक्षा में बहुवचन का प्रयोग होता है । अर्थात् दो से अधिक की संख्या का बोध कराने के लिये बहुवचन का प्रयोग किया जाता है । ध्यान देने योग्य है कि एक वस्तु के लिये एकवचन तथा दो वस्तु के लिये द्विवचन तथा दो से अधिक कितनी भी संख्या हो सभी बहुवचन में आती हैं । दो से अधिक हों चाहे तीन हो, तीन सौ हो अथवा तीन हजार या उससे भी अधिक हों सभी बहुवचन में रहेंगे ।
2-- प्रत्यय के आदि (प्रारम्भिक) चवर्ग तथा टवर्ग की इत्संज्ञा होती है । तदनुसार तस्य लोप: से उनका लोप हो जाता है ।
3-- सुप् तथा तिड्. को विभक्ति भी कहते हैं । यहाँ भी से संकेत है पद से । क्यूँकि सुप्तिंड्.न्तं पदम् से सुप् और तिड्. को पद कहते हैं । इस सूत्र से उन्हें विभक्ति भी कहते हैं ।
4-- विभक्ति के तवर्ग, 'स्'कार तथा 'म्'कार की इत्संज्ञा नहीं होती है ।
इति
Best
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