संहिताया: (सन्‍धे:) अनिवार्यता ।।



वाक्‍ये सन्‍धे: अनिवार्यताविषयकं सूत्रमिदं द्रष्‍टव्‍यम्  :-

संहितैकपदे नित्‍या, नित्‍या धातूपसर्गयो: । 
नित्‍या समासे वाक्‍ये तु सा विवक्षामपेक्षते ।। 

व्‍याख्‍या :
एषु स्‍थानेषु सन्धि: अनिवार्यरूपेण भवितव्‍या - 1.एकपदे
2. धातूपसर्गयो: मध्‍ये (एकत्र उपस्थित: सन्)
3. समासे 
किन्‍तु वाक्‍ये तु प्रयोक्‍ता सन्धिकार्यं कर्तुं स्‍वतन्‍त्र ।
इत्‍युक्‍ते संहिता क‍रणीया न वा वक्‍ता स्‍वेच्‍छया निर्धारयेत् ।।

हिन्‍दी - इन स्‍थानों पर सन्धि (संहिता) अनिवार्यरूप से होती है -
1. एकपद में 
2. धातु और उपसर्ग के इकट्ठा होने पर उनके बीच 
3. समास में 
किन्‍तु वाक्‍य में सन्धि के विषय में सन्धिकार्य प्रयोगकर्ता (वक्‍ता) की इच्‍छा पर निर्भर है । अर्थात् यदि वक्‍ता चाहे तो बोलते समय वाक्‍य में सन्धि का प्रयोग करे अथवा स्‍वेच्‍छानुसार सन्धिरहित पद प्रयोग करे ।


इति

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