ह्रस्वदीर्घप्लुतसंज्ञाः
ऊकालोSज्झ्रस्वदीर्घप्लुतः ।।०१⁄०२⁄२७।।
उश्च ऊश्च उ३श्च वःवां काल इव कालो यस्य सोSच् क्रमाद् ह्रस्वदीर्घप्लुतसंज्ञः स्यात् ।
अर्थ – एकमात्र ʺउʺ‚ दि्वमात्र ʺऊʺ तथा त्रिमात्र ʺउ३ʺ‚ इन तीनों ही उकारों के काल के समान जिन स्वर वर्णों का उच्चारण काल हो उन्हें क्रमशः ह्रस्व (लघु)‚ दीर्घ (गुरु) तथा प्लुत कहते हैं ।
ह्रस्व – ‘उ‘ के मात्राकाल के समान जिस स्वर वर्ण का मात्राकाल हो उसे ह्रस्व स्वर कहते हैं । इत्युक्ते एकमात्राकाल से युक्त वर्ण ह्रस्व होता है । ह्रस्व वर्ण बताने के लिये ʺ।ʺ चिह्न प्रयुक्त होता है ।
दीर्घ – ‘ऊ‘ के मात्राकाल के समान जिस स्वर वर्ण का मात्राकाल हो उसे दीर्घ स्वर कहते हैं । इत्युक्ते दि्वमात्राकाल से युक्त वर्ण दीर्घ होता है । दीर्घ वर्ण के लिये ʺSʺ चिह्न अंकित किया जाता है ।
प्लुत् – ‘उ३‘ के मात्राकाल के समान जिस स्वर वर्ण का मात्राकाल हो उसे प्लुत स्वर कहते हैं । इत्युक्ते दो से अधिक मात्राकाल से युक्त स्वर वर्ण प्लुत होता है । इसे दर्शाने के लिये उक्त स्वर के साथ ३ अंक लिखा जाता है । यथा – ʺउ३ʺ ।
विशेष –
- सूत्र में ऊकाल के द्वारा उ‚ ऊ तथा उ३ तीनों का संकेत किया गया है । उ + ऊ + उ३ = ऊ (अकः सवर्णे दीर्घः से दीर्घ आदेश होकर तीनों उ के स्थान पर ऊ बना) ।
- व्याख्यासूत्र ʺउश्च ऊश्च उ३श्च वःʺ में दिया हुआ वः उ का बहुवचन का रूप है ।
- ʺवां काल इव कालोʺ में दिया गया ʺवांʺ उ का षष्ठी बहुवचन का रूप है ।
ह्रस्वदीर्घप्लुतादि कालों को समझने के लिये निम्न श्लोक याद कर सकते हैं –
एकमात्रो भवेद् ह्रस्वो दि्वमात्रो दीर्घ उच्यते ।
त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनं चार्धमात्रकम् ।।
एक मात्रा वाला स्वर ह्रस्व‚ दो मात्राओं वाला स्वर दीर्घ तथा तीन मात्राओं वाला स्वर प्लुत जानना चाहिए । व्यञ्जन की आधी मात्रा समझनी चाहिए ।
प्रकृति से भी मात्राकाल की शिक्षा ली जा सकती है –
चाषस्तु वदते मात्रां दि्वमात्रं चैव वायसः ।
शिखी रौति त्रिमात्रं तु नकुलस्त्वर्धमात्रकम् ।।
नीलकण्ठ पक्षी एकमात्राकाल में बोलता है‚ कौवा दो मात्राकाल में बोलता है‚ मयूर की आवाज त्रिमात्रिक होती है तथा नेवले की आवाज आधी मात्रा युक्त होती है ।
इति
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