उदात्तानुदात्तस्वरितसंज्ञाः
उच्चैरुदात्त: ।।01/02/२९।।
ताल्वादिषु सभागेषु स्थानेषूर्ध्वभागे निष्पन्नोSजुदात्तसंज्ञ: स्यात् ।तालु कण्ठ आदि सखण्ड स्थानों के ऊपर के भाग से उच्चरित अच् उदात्तसंज्ञक होता है ।
नीचैरनुदात्त: ।।01/02/३०।।
ताल्वादिषु सभागेषु स्थानेष्वधोभागे निष्पन्नोSच् अनुदात्तसंज्ञ: स्यात् ।तालु कण्ठ आदि सखण्ड स्थानों के अधोभाग से उच्चरित अच् अनुदात्तसंज्ञक होता है ।
समाहार: स्वरितः ।।01/02/३१।।
उदात्तानुदात्तत्वे वर्णधर्मौ समाह्रियेते यत्र सोSच् स्वरितसंज्ञ: स्यात् ।
तालु कण्ठ आदि सखण्ड स्थानों के मध्यभाग से उच्चरित अच् स्वरितसंज्ञक होता है । अथवा उदात्त तथा अनुदात्त स्थानों के मध्यभाग से बोला जाने वाला स्वर स्वरित होता है ।
तालु कण्ठ आदि सखण्ड स्थानों के मध्यभाग से उच्चरित अच् स्वरितसंज्ञक होता है । अथवा उदात्त तथा अनुदात्त स्थानों के मध्यभाग से बोला जाने वाला स्वर स्वरित होता है ।
विशेष – प्रत्येक स्वर चाहे वह ह्रस्व हो‚ दीर्घ हो अथवा प्लुत हो‚ सभी के उदात्त‚ अनुदात्त और स्वरित भेद होते हैं । आगे स्वरबोधक चक्र में इसे हम और अच्छी तरह से समझेंगे ।
इति
समाहार स्वरित बताओ
जवाब देंहटाएंपाणिनी के उच्चैरुदात्त नीचै:अनुदात्त: समाहार स्वरितः की समुचित व्याख्या!!!
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