अनुनासिकसंज्ञासूत्रम् ।।


अनुनासिकसंज्ञा

मुखनासिकावचनोSनुनासिकः ।।०१⁄०१⁄०८।।
मुखसहितनासिकयोच्चार्यमाणो वर्णोSनुनासिकसंज्ञः स्यात् ।

तदित्थम् – अ इ उ ऋ एषां वर्णानां प्रत्येकमष्टादशभेदाः । लृवर्णस्य द्वादश तस्य दीर्घाभावात् । एचामपि द्वादश तेषां ह्रस्वाभावात् ।

     मुख सहित नासिका से उच्चार्यमाण वर्णों की अनुनासिक संज्ञा होती है । अर्थात् जिन वर्णों के उच्चारण में मुख के साथ ही नासिका का भी प्रयोग किया जाता है उन्हें अनुनासिक वर्ण कहते हैं । सभी स्वर वर्णों के अनुनासिक व निरनुनासिक (अननुनासिक) दोनों ही भेद होते हैं ।
      इस तरह यदि पूर्वोक्त ह्रस्व‚ दीर्घ‚ प्लुत‚ उदात्त‚ अनुदात्त‚ स्वरित तथा इन अनुनासिक व अननुनासिक भेदों के हिसाब से वर्णों का वर्गीकरण किया जाए तो – अ इ उ तथा ऋ वर्णों के १८–१८ भेद तथा लृ‚ ए‚ ऐ‚ ओ व औ के १२–१२ भेद होते हैं । लृ वर्ण का दीर्घ न होने के कारण उसके ६ भेद कम रह जाते हैं । इसी तरह ए‚ ऐ‚ ओ व औ के ह्रस्व भेद न होने के कारण इनके भी ६–६ भेद कटकर १२–१२ भेद रह जाते हैं ।


अ इ उ ऋ लृ (ह्रस्व भेद)

ह्रस्व उदात्त अनुनासिक
ह्रस्व उदात्त अननुनासिक
ह्रस्व अनुदात्त अनुनासिक
ह्रस्व अनुदात्त अननुनासिक
ह्रस्व स्वरित अनुनासिक
ह्रस्व स्वरित अननुनासिक

आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ औ (दीर्घ भेद)

दीर्घ उदात्त अनुनासिक
दीर्घ उदात्त अननुनासिक
दीर्घ अनुदात्त अनुनासिक
दीर्घ अनुदात्त अननुनासिक
दीर्घ स्वरित अनुनासिक
दीर्घ स्वरित अननुनासिक

अ इ उ ऋ लृ ए ऐ ओ औ (प्लुत भेद)
प्लुत उदात्त अनुनासिक
प्लुत उदात्त अननुनासिक
प्लुत अनुदात्त अनुनासिक
प्लुत अनुदात्त अननुनासिक
प्लुत स्वरित अनुनासिक
प्लुत स्वरित अननुनासिक



     इन्हें समझने के लिये वर्णों को उनके वर्गों के अनुसार अलग रंग से रंग दिया गया है । अ इ उ तथा वर्ण तीनों ही वर्गों में हैं अतः प्रत्येक वर्ग के छः भेद जोड़ लेने पर इनकी संख्या १८ हो जाती है‚ लृ पहले तथा तीसरे वर्ग में है किन्तु दीर्घ वर्ग में नहीं है‚ इस तरह इसके केवल १२ भेद । इसी भाँति ए‚ ऐ‚ ओ तथा भी दूसरे तथा तीसरे ही वर्ग में हैं‚ प्रथम में नहीं । अतः इनके भी १२ भेद हुए ।



इति

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