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धूर्त सियार और हाथी की कथा ।

    ब्रह्मारण्य में कर्पूरतिलक नाम का हाथी रहता था । उसको देखकर वन के सब सियार सोचने लगे कि यदि यह हाथी किसी उपाय से मर जाय तो इसके शरीर से हम लोगों का चौमासा (वर्षाकाल के चार महीने) आराम से बीत जाएगा ।

सियारों की भावना जानकर एक बूढे सियार ने संकल्प लिया कि मैं अपनी बुद्धि के प्रभाव से इस हाथी को मारूँगा । इसके बाद वह धूर्त सियार कर्पूरतिलक हाथी के पास जाकर साष्टांग प्रणाम करके बोला - महाराज ǃ कृपा करके मेरी ओर देखिये और मेरी बातें सुनिये ।

हाथी बोला - तुम कौन हो ॽ कहाँ से आये हो ॽ

तब सियार बोला - मैं सियार हूँ‚ और सब जंगली पशुओं ने मिलकर मुझे आपके पास भेजा है । क्योंकि बिना राजा के रहना ठीक नहीं है अतः उन लोगों ने इस वन के राज्य में राजा बनाने के लिये समस्त राजगुणों से युक्त आपको ही निश्चित किया है ।

कहा भी गया है - जो कुलीन‚ अभिजात‚ आचार विचार में शुद्ध‚ प्रतापी‚ धार्मिक तथा नीतिकुशल हो वही संसार में राजा होने योग्य है ।

यः कुलाभिजनाचारैरतिशुद्धः प्रतापवान् ।

धार्मिको नीतिकुशलः स स्वामी युज्यते भुवि ।।

अतः आप शीघ्र ही चलिये‚ जिससे राज्याभिषेक का मुहूर्त न टल जाए । ऐसा कह कर वह सियार उठ कर आगे-आगे चल पड़ा । वह कर्पूरतिलक हाथी भी राज्य के लोभ में पड़कर उस सियार के पीछे-पीछे दौड़ता हुआ जाने लगा और एक बड़े से दलदल में फँस गया ।

दलदल में फँसा हुआ हाथी सियार से बोला - भाई सियार ǃ अब मैं क्या करूँ ॽ मैं तो कीचड़ में फँस गया हूँ और मर रहा हूँ‚ पीछे घूमकर मेरी ओर देखो ।

सियार हँस कर बोला - हे देव ǃ आप मेरी इस छोटी सी पूँछ के अग्रभाग को ही पकड़ कर निकल आइये । अरे ǃ मेरे जैसे क्षुद्र के कहने का आपने विश्वास किया इस लिये अब इस अनन्त दुःख को भोगिये । 

किसी ने सही ही कहा है - जब कुसंग से रहित होओगे तभी संसार में सुखपूर्वक रहोगे और जियोगे । और यदि दुर्जनों के संग में फँसोगे तो जरूर ही गिर जाओगे ।

यदाSSसत्संगरहितो भविष्यसि‚ भविष्यसि ।

तदाSSसज्जनगोष्ठीषु पतिष्यसि‚ पतिष्यसि ।।

इसके बाद भीषण कीचड़ में फँसा हुआ हाथी वहीं मर गया और उसे सियारों ने खा डाला ।


हितोपदेश


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